________________
प्राचीन जैन इतिहाम। ४८ सांकल के सब बन्धन टूट गए। भक्ति रससे नम्र होकर चन्दनाने नवधा भक्तिसे उनका पड़गाहन किया। उसके शीलके माहात्म्यसे मिट्टीका सकोरा सुवर्णका होगया और कोदोंका भात चांवलोंका होगया । उसने विधिपूर्वक भगवानको माहार दिया इससे उसके यहां पंचाश्चर्य हुए।
(१३) बारह वर्षतक छद्मस्थ अवस्थामें रहकर मापने तपश्चरण किया । वैशाख सुदी १० के दिन मनोहर नामक वनमें शाल वृक्ष के नीचे उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ। इन्द्रादि देवोंने समवशरणकी रचना की और ज्ञान कल्याणक उत्सव मनाया।
(१४) तीन घण्टे तक भगवान्की दिव्यध्वनि प्रकट नहीं हुई । इन्द्रने दिव्यध्वनि न होने का कारण जान लिया कि गणधर न होने के कारण ही दिव्यध्वनि नहीं होती है। वे उसी समय गौतम गणधरकी खोजमें ब्राह्मणका रूप धारण कर ब्राह्मण नगरके शांडिल्य ब्रह्मणके गौतम नामक पुत्र के पास भाए । गौतम वेद वेदाङ्गोंके ज्ञाता महा बुद्धिमान थे । गौतमके पास भाकर इन्द्र ब्राह्मणने कहा कि मेरे गुरु एक श्लोक कहकर समाधिमें मग्न हो ए हैं, भाप यदि उस श्लोकका अर्थ बतला सके तो बतला दीजिए।
गौतमने कहा-आप श्लोक कहिए, मैं उसका अर्थ अवश्य ही बतलादूंगा। तब ब्राह्मणने कहा-पहले भाप इस तरहकी प्रतिज्ञा करें कि अगर आपने मेरे श्लोकका अर्थ बतलादिया तो मैं भापका शिष्य होजाऊंगा और अगर मापने अर्थ नहीं बतलाया तो भापको मेरे गुरुका शिष्य बनना पड़ेगा। गौतमने इस बातको स्वीकार