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प्राचीन जैन इतिहास। ४६
(६) एकवार संजय और विजय नामके दो चारण मुनियोंको किसी पदार्थमें संदेह उत्पन्न हुआ। वे भगवानके जन्मके बाद ही उनके समीप आए और भगवान के दर्शन मात्रसे ही उनका संदेह दूर होगया इसलिए उन्होंने बड़ी भक्तिसे उनका सन्मति नाम रक्ख।।
(७) एक दिन इन्द्रकी सभामें देवोंमें परस्पर यह कथा चली कि इस समय सबसे शूरवीर श्री वर्धमानस्वामी हैं। इसे सुनकर संगम नामक एक देव उनकी परीक्षा के लिए भाया । उस समय भगवान महावीर बालकोंके साथ बनमें वृक्षपर चढ़ने उतरने का खेल खेल रहे थे । उस देवने उन्हें डरानेकी इच्छासे महा भयंकर नागका रूप धारण किया और वह वृक्षकी जड़से लेकर धतक लिपट गया। उसे देखकर सब बालक डासे घबड़ाकर बृक्षसे पृथ्वीपर कूदकर भाग गए। उस समय बालक वीरनाथ उस महा भयानक -सर्पके मस्तकपर बैठ गए। उस देवने भगवान् का महावीर नाम रखकर उनकी स्तुति और भक्ति की।
(८) आप तीस वर्षतक कुमारकालमें रहे । आपका विवाह नहीं हुआ था । एक दिन मतिज्ञान के विशेष क्षयोपशमसे उन्हें मात्मज्ञान प्रगट हुआ । उस समय यज्ञमें जीव होमे जाने लगे थे, बलिदानके नामसे जीवोंकी बलि दी जाती थी और घोर हिंसाके भाव फैल गए थे । इन सब बातोंको देखकर उनका हृदय करुणासे भर माया, उनके मनमें संसारसे वैराग्य उत्पन्न हुआ। उसी समय लौकान्तिक देवोंने भाकर नियमानुसार उनकी स्तुति की और