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प्राचीन जैन इतिहास । ४४
(१०) भगवानने ध्यान में तल्लीन होकर चैत्र कृष्णा १४को वेवलज्ञान प्राप्त किया।
(११) इन्द्रादि देवोंने भाकर समोशरणकी रचना की। वह संवर नामक ज्योतिषी देव भी अत्यंत शांत होगया और मिथ्यात्व छोड़कर उसने भगवानकी प्रदक्षिणा की और सम्यग्दर्शन स्वीकार किया। (१२) भगवानकी सभामें इस भांति चतुर्विध संघ था
१० स्वयंभुव आदि गणधर ३५० पूर्वधारी मुनि १०९०० शिक्षक मुनि १४०० अवधिज्ञानक धारी
७५० मन:पर्ययज्ञानी १००० केवलज्ञानी १००० विक्रिया ऋद्धिके घारी
६०० वादी मुनि ३६००० सुलोचना भादि आर्यिका १००००० श्रावक ३००००० श्राविकाएं
( १३ ) भायुके एक मास शेष रहनेतक मापने समस्त आर्यखण्डमें विहार किया और विना इच्छाके दिव्यध्वनिद्वारा धर्मोपदेश मादिसे प्राणियों का हित किया।