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तीसरा भाग
(१४) जब भायुका एक मास शेष रहा तब दिव्यध्वनि होना बन्द हुई और सम्मेदशिखर पर्वतपर इस एक माहमें शेष कर्मों का नाश कर छत्तीस मुनियों सहित श्रावण शुक्ला सप्तमीको मोक्षा पधारे । इन्द्रादि देवोंने निर्वाण कल्याणक किया।
पाठ १४ । भगवान् महावीर।
चौवीसवें तीर्थकर । (१) भगवान् पार्श्वनाथके बाद दोसौ पचास वर्ष बीत जाने पर श्री महावीर भगवान् का जन्म हुआ।
(२) भगवान्क पिताका नाम सिद्धार्थ और माताका नाम रानी प्रियकारिणी था। आप कुंडलपुरके राजा इक्ष्वाकु वंशी थे।
(३) अषाढ़ शुक्ला ६ को भाप गर्भमें आए । गर्भमें आनेके छह माह पूर्व से जन्म होने तक स्वर्गसे रत्नोंकी वर्षा होती रही। देवियां माताकी सेवा करने लगीं। गर्भ मानेपर माताने सोलह स्वप्न देखे । इन्द्रादि देवोंने गर्भकल्याणक उत्सव मनाया।
(४) भापका जन्म चैत्र सुदी १३को हुमा । जन्मसे ही माप तीन ज्ञान के धारी थे। इन्द्रादि देवोंने भापका जन्मकल्याणक उत्सव मनाया ।
(५) भापकी भायु ७२ वर्षकी थी और शरीर सात हाथ ऊंचा था। आपके लिए वस्त्राभूषण स्वर्गसे आते थे और वहांसे देवगण क्रीड़ा करनेको भाया करते थे।