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तीसरा भाग
(३) भगवान् पार्श्वनाथ वैशास्त्र कृष्ण द्वितीयाके दिन विशाखा नक्षत्र में गभमें भाए। माताने सोलहस्वप्न देखे । गर्भमें मानेके छह माह पहिलेसे जन्म होने तक देवोंने रत्नवर्षा की और गर्भमें आने पर गर्भकल्याणक उत्सव मनाया। माताकी सेवामें देवियां रहती थीं।
(४) पौष कृष्णा एकादशीको भगवान् पार्श्वनाथका जन्म हुमा। इन्द्रादि देव भगवान्को सुमेरुपर लेगये । और जन्मल्या . णक उत्सव मनाया। माप जन्मसे ही मतिज्ञानादि तीन ज्ञानयुक्त थे।
(५) आपकी भायु सौ वर्षकी थी और शरीर नौ हाथ ऊंचा था । आपके शरीरका वर्ण हरित था।
(६) एक दिन कुमार अवस्थामें आप सब सैनाके साथ क्रीड़ा करने नगरके बाहिर भाश्रम बनमें गए थे। वहां महीपाल नगरका राजा जो अपनी पटरानीके वियोगमें दुखी होकर तपसी हो गया था पंचा मके मध्य बैठा, तपश्चरण कर रहा था। उसे देखकर माप उसके समीप गये और उसे बिना ही नमस्कार किये खड़े रहे । अपना इस तरह अनादर देवकर महीपाल तपस्वीको क्रोध माया और वह विचार करने लगा कि मैं गुरु हूं, कुकीन हूं, तपोवृद्ध हूं, और इसकी माताका पिता हूं। तौभी इस मूर्ख कुमारने मुझे नमस्कार नहीं किया। इस तरह क्रोधित होकर उस मूर्ख तपस्वीने शांत हुई भग्निमें डालने के लिये लकड़ी काटनेको एक बड़ी कुल्हाड़ी उठाई । तब भवधिज्ञानसे जानकर कुमार पाश्वनाथने