Book Title: Prachin Jain Itihas Part 03
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 27
________________ प्राचीन जैन हातहास। १६ और कहा है कि यह कन्या आपको दे भाना, इसलिए मैं रातमें ही भापके यहाँ पहुँचनेके लिए जा रहा हूं। नंदगोपकी यह बातें सुनकर दोनों पिता पुत्र संतुष्ट हुए, उन्होंने नंद गोपसे पुत्री लेकर अपना पुत्र दे दिया और समझा दिया कि यह बालक होनहार चक्रवर्ती है। इसके बाद ये दोनों पिता पुत्र छिपकर विना किसीको मालूम हुए मथुरा लौट आए। (३) नंदगोप उस बालकको लेकर अपने घर गया और स्त्रीसे कहने लगा कि उस देवताने प्रसन्न होकर मुझे बड़ा ही पुण्यवान पुत्र दिया है। यह कहकर अपनी स्त्रीको बालक सौंप दिया। . . (४) कंसने सुना कि देवकीके पुत्री हुई है, सुनते ही वह तुरन्त दौड़ा भाया । माते ही पहले तो उसकी नाक काट डाली। और फिर जमीन के नीचे तलघरमें बड़े प्रयत्नसे पालन करने के लिये घायको सौंप दी। (५) मथुरानगरमें अकस्मात् बहुतसे उत्पात होने लगे तब कंसने वरुण नामक निमित्तज्ञानीसे उसका फल पूछा। निमित्त ज्ञानीने कहा कि आपका बड़ा भारी शत्रु उत्पन्न होचुका है। इस बातको सुनकर उसे बड़ी चिंता हुई। तब उसने पहले जन्मकी मित्र देवियोंको स्मरण किया । देवियोंने आकर कहा-हमारे लिये क्या काम है ? तब कंसने कहा कि मेरा शत्रु उत्पन्न हुआ है, उसे ढूंढकर तुम मार माओ। (६) उनमें पूतना नामकी एक देवीने विभंगा अवधिसे वासुदेवको जान लिया । उस दुष्टनीने माताका रूप धारण किया।

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