Book Title: Prachin Jain Itihas Part 03
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 41
________________ प्राचीन जैन इतिहास । ३० (८) एकवार दुर्योधनने कपटसे लाखका महल बनवाया । - वह महल पांडवोंको रहने के लिये दे दिया गया। (९) एक समय जब पांडव सोये थे, माधीरातको कौरवोंने उस महलमें भाग लगवादी । पुण्ययोगसे पांडवोंको जमीनके नीचे • एक सुरंग मिल गई। वे सुरङ्गके मार्गसे निकलकर बाहिर होगये । लोगोंने समझा कि पांडव जल चुके हैं, इससे सबको दुःख हुआ। (१०) पांडव ब्राह्मणका वेष रखकर आगे चलकर गंगाके किनारे पहुंचे। वे एक नावपर चढ़कर गंगाके उस पार चलने लगे। नाव बीचधारमें पहुंचकर अचल होगई । धीवरसे पूछने पर पांडवोंको मालूम हुआ कि यहां तुंडिका नामक जलदेवी रहती है, वह नावको रोककर भेंट मांगती है, इसे मनुष्यकी बलि चाहिए । यह सुनकर पांडवोंको बहुत दुःख हुभा । इसी समय भीम सबको सान्तवना देता हुमा गंगामें कूद पड़ा । तुंडी भयंकर मगरका रूप रखकर आई, दोनोंमें भयंकर युद्ध हुमा, भन्तमें भीमकी मारसे व्याकुल होकर तुंडी भाग गई । भीम गंगाको तैरकर भागया । (११) गंगा पार कर पांडव अनेक स्थानोंपर भ्रमण करते हुए भपने पराक्रमका परिचय देते एक वनमें पहुंचे। वहां एक पिशाचसे युद्ध कर भीमने हिंडवा नामक कन्याकी रक्षा की और उससे पाणिग्रहण किया, जिससे घुटुक नामक पुत्र हुमा । वहां भी भीमने भीमासुर नामक राक्षसको जीता। (१२) भ्रमण करते हुए पांडव माकन्दी नगरी पहुंचे। वहांका राजा द्रुपद था, उसकी द्रोपदी नामकी युक्ती कन्या थी,

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