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३१ . तीसरा भाम राजाने उसका स्वयंवर रचा था। स्वयंवरमें दुर्योवन, कर्ण, यादव मादि सभी राजा भाए थे । ब्राह्मण वेषधारी पांडव भी वहां का पहुंचे । राजाने घोषणा की कि जो कोई गांडीव धनुषको चढ़ाकर राधावेध करेगा वही कन्याका वर होगा। किसी भी राजाका साहस धनुष चढ़ानेका नहीं हुआ, तब अर्जुन धनुष चढ़ानेके लिए उठा। उसने धनुष चढ़ाकर राधाकी नाकके मोतीको बातकी बातमें वेव डाला, तब द्रौपदीने अर्जुनके गलेमें वरमाला डाली, दैववशात् माला वायुके वेगसे टूट गई जिससे पासमें बैठे हुए चारों पांडवोंकी गोदमें उसके मोती पड़े। लोगोंने मूखतावश यह कह दिया कि इसने पांचों पांडवोंको वरा है। इससे मन्य राजा बहुत क्रोधित हुये । उन्होंने अर्जुनसे युद्ध करना चाहा परन्तु सभी पराजित हुये। अंतमें द्रोणाचार्य युद्ध करनेको तैयार हुये, तब मर्जुनने धनुषमें एक पत्र चिपका कर उन्हें भात्मपरिचय दिया। परिचय प्राप्त होने पर वे तथा सभी राजा बड़े प्रेमसे मिले और सबने मिलकर पपर क्षमा करा कर कौरव पांडवोंको मिला दिया। पांडव पांच ग्राम लेकर अलग रहने लगे।
(१३) एकवार श्रीकृष्णने अर्जुनको द्वारिका बुलाया। वहांपर श्रीकृष्णकी बहिन सुभद्राको देखकर वे मोहित होगये। वे सुभद्राका हरण कर लेआए। पश्चात् उसके साथ उनका विवाह हुमा।
(१४) एक समय दुर्योधनने कपटसे पांडवों को बुलाकर उनसे जूमा खेलने के लिये कहा। दोनोंमें पासा फिकने लगा कौर. वोंका पांसा अनुकूल पडता था। परन्तु कभी २ भीमकी हुंकारसे