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तीपग भाग
___ (४) देवव्रतने धवारा जसे कहा कि माप निश्चिंत रहिए। मैं अपने राज्यका अधिकार छोड़ता हूं और प्रतिज्ञा करता हूं कि मापकी कन्याका पुत्र ही राज्यका स्वामी होगा। धीवरराजने कहायह तो ठीक है, परन्तु भापका विवाह होगा और भापक जो संतान होगी उसने कहीं राज्य छीन लिया तो मेरी कन्याके पुत्र क्या कर सकेंगे ? यह सुनकर देवव्रत कुछ समयको विचारमें पड़ गए । फिर वह दृढ़तापूर्वक बोले- धीवरराज ! मैं तुम्हारी यह आशंका भी दर किए देता हूं। लो, तुम सुनो, देवता सुनें, और सारा संसार सुने । मैं भाज यह प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं आजीवन विवाह नहीं कराऊंगा, और जीवन भर ब्रह्मचारी रहूंगा।
(५) देवव्रतकी यह कठिन प्रतिज्ञा और पिताकी भक्ति देखकर धीवराज आश्चर्यमें पड़ गया। उसने अपनी कन्या राजा शांतनुको देना स्वीकार की। उसी दिनसे देवव्रतका भीष्म नाम पड़ गया।
(६) भीष्मका विवाह काशीनरेशकी कन्या अंबा तथा अंबालिकासे होना निश्चित था, परन्तु उन्होंने अपनी प्रतिज्ञाको जीवन भर बड़ी दृढ़तासे निवाहा । उन कन्याओंने भीष्मको अपनी प्रतिज्ञासे कईबार चलित करना चाहा, परन्तु वे अपनी प्रतिज्ञामें निश्चक रहे। ब्रह्मचर्य के प्रतापसे उनमें अद्वितीय शक्ति और तेज था। वृद्धावस्था में भी उनकी वीरता और साहसकी समानता करनेवाला कोई व्यक्ति नहीं था।