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तीसरा भाम
उनके पीछे २ जा रहा था तब यादवोंकी कुल-देवता बहुतसा ईंधन इकट्ठा कर बहुत ऊँची लौवाली ममि जलाकर एक बुढ़ियाका रूप बनाकर मार्गमें बैठ गई। उसे देखकर कालयवनने पूछा कि यह क्या है, तब बुढ़िया बोली कि हे राजन् ! आपके डरसे यादवों सहित मेरे सब पुत्र इस ज्वालामें पड़कर जल गए हैं। बुढ़ियाकी बातें सुनकर कालयवनने सोचा, निश्चय ही मेरे भयसे सब शत्रु अग्निमें चल गए हैं। वह अपने देशको लौट गया ।
(१४ ) यादवोंकी सेना समुद्रके किनारे पहुंची और अपना स्थान बनाने के लिये वहीं पर ठहर गये । फिर कृष्णने शुद्ध भावोंसे दर्भशय्या पर बैठ कर विधिपूर्वक मंत्रोंका जप करते हुये भाठ दिनका उपवास किया। तब नैगम नामके देवने कृष्णसे कहा कि घोड़ेके आकारका एक देव भाज भायेगा उसपर सवार होकर समुद्र में बारह योजन तक चले जाना, वहांपर आपके लिये एक नगह बन जायगा। कृष्णने वैसा ही किया। कृष्णके पुण्य कर्मके उदय और तीर्थकरकी उत्पत्ति के कारण इन्द्रकी माज्ञासे कुबेरने वहीं पर उसी समय एक मनोहर नगरी बनाई । उसका नाम द्वारावती रक्खा गया। उसमें पिता और बड़े भाइयों के साथ कृष्णने प्रवेश किया। तथा सब यादवोंके साथ सुखसे रहने लगे।
(१५) एक दिन मगधदेशके रहनेवाले कुछ वैश्य पुत्र समुद्रका मार्ग भूल कर द्वारावतीमें आ पहुंचे। वहांकी राजलीला और विभति देखकर उन्हें बड़ा माश्चर्य हुआ। उन्होंने वहांसे बहुत मच्छे २ रत्न साथ लिये और राजगृह नगरमें पहुंचे। वहां उन्होंने