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प्राचीन जैन इतिहास । २६ होगई। उसने अपनी कामवासनाकी बातें प्रकट की और दो बहुमूल्य विद्याएं देनेका वचन दिया । प्रद्युम्नने विद्याएं तो ले ली परन्तु उसे माता कहकर प्रणाम किया ।
. (६) कांचनमालाकी कामवासना पूर्ण न होनेसे उसने राजासे जाकर कहा कि कुमार मुझसे बलात्कार करना चाहता है । विचारशून्य राजाने उसकी बात मानकर अपने पांचसौ पुत्रोंको हुक्म दिया कि तुम इसे किसी एकांतमें ले जाकर मार डालो।
(७) वे सभी पुत्र कुमारको मारने के लिए सोलह भयंकर गुफाओं, वावड़ियों, तथा वनों में ले गए। वहांपर बड़े भयानक राक्षस, यक्ष तथा मजगर आदि रहते थे, वहां जाकर उन राक्षसों, यक्षों और अजगरों को जीतकर प्रद्युम्नने अनेक विद्याएं, हथियार तथा भाभूषण प्राप्त किए । जब उन सभी स्थानोंसे प्रद्युम्न लाभ लेकर जीते लौट आए, तब अन्तमें उन्होंने पातालमुखी वावड़ीमें फंसा कर मारनेका विचार किया। प्रद्युम्नने प्रज्ञप्ति नामकी विद्याको अपना रूप बना कर वावड़ीमें कुदा दिया और जब वे सब राजकुमार उसे मारने वावड़ीमें कूदे तब प्रद्युम्नने उस बावड़ीको एक बड़ी शिलासे ढक दिया और छोटे पुत्रको नगरमें भेज दिया और वे शिला पर बैठ गये ।
(८) शिला पर बैठे हुये उन्होंने नारदको उतरते देखा। नारदने प्रद्युम्नको उनके माता पिता भादिका साग हाल सुनाया। उसी समय कालसंभव विद्याधरने क्रोधित होकर अपनी सेना लेकर उसे घेर लिया पर प्रद्युम्नने सबको युद्ध में हरा दिया। और अंतमें अपना सब सच्चा हाल सुनाया। तब कालसंभवने प्रद्युम्नसे क्षमा