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२७ .तीसग भाग मांगी। उन्होंने राजासे द्वारिका जानेकी भाज्ञा मांगी और वे नारदके साथ द्वारिकाको चल दिये।।
(९) द्वारिका जाकर विद्यासे नारदको तो रथ ही रोक दिया और भाप बन्दरका रूप धारण कर अकेले ही नीचे आया। भाते ही अपनी माता रुक्मिणिकी सौत सत्यभामाका वावन नामका बहु सुन्दर बाग उजाड डाला और उसमें बाव. डीका सब जल कमंडलुमें भर लिया। इसी तरह भनेक प्रकारके कौतूहल करता हुआ वह क्षुल्लकका रूप धारण कर अपनी माता रुक्मिणीके पास पहुंचा। और कहने लगा कि हे सम्यग्दर्शनको पालन करनेवाली मैं भूखा हूं, मुझे अच्छी तरह भोजन करा । उसके दिए हुए अनेक तरहके भोजन खाए परन्तु तृप्त नहीं हुमा । तब मन्तमें एक बड़ा मोदक खाकर संतुष्ट होकर वहां बैठ गया । उसी समय रुक्मिणीने देखा कि असमयमें ही चंग, अशोक भादिके सब फूल फूल गए हैं। उन्हें देखकर रुक्मिणीको बहुत आश्चर्य हुआ। वह प्रसन्नचित्त होकर पूछने लगी कि क्या आप मेरे पुत्र हैं और नारदके कहे अनुसार ठीक समयपर आये हैं। माताको यह बात सुनकर प्रद्युम्गने अपना रूप प्रकट किया और माताके चरणोंमें मस्तक नवाया। माताकी इच्छानुसार भनेक तरहकी बालक्रीड़ाएं कर उसे प्रसन्न किया और वहीं ठहरा ।
___ कुछ समय बाद अत्यंत बुढेका रूप बनाकर वह गलीमें सोरहा और बलभद्रके जगानेपर अपने पैर लम्बेकर उन्हें ठगा । फिर मेढेका रूप बनाकर बाबा वसुदेवका घोंटू तोड़ा और सिंह बनकर