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प्राचीन जैन इतिहास। २२ वे रत्न चक्ररत्नके स्वामी राजा जरासिंधुको भेंट किये। राजाने उन सबका आदर सत्कार करके पूछा कि यह रत्नोंका समूह तुम्हें कहांसे मिला । तब उन वैश्य पुत्रोंने कहा कि “ समुद्रके बीचमें एक बहुत ही सुन्दर नगर है, उसका नाम द्वारावती है, उसमें यादवोंका राज्य है, उसी नगरसे ये रत्न हमें मिले हैं । यह सुनकर जरासिंधु क्रोषसे अन्धा होकर यादवोंका नाश करनेके लिए अपनी सब सेना' लेकर चला।
(१६) नारदने बड़ी शीघ्रतासे उसी समय श्रीकृष्णक समीप जाकर जरासिंधुके मानेकी खबर सुनाई, सुनते ही कृष्ण शत्रुको मारने के लिए तैयार होगए। वे अपनी सेना सजाकर जरासिंधुसे युद्ध करने के लिए चल दिए, उनकी सेनामें पांचों पांडव आदि शूरवीर राजा थे।
(१७) जरासिंधु, भीष्म, कर्ण, द्रोण भादि राजाओं के साथ श्रीकृष्णके सामने युद्धके लिए पहुंचा। दोनों सेनाओंमें भयंकर युद्ध हुआ। जरासिंधुने कृष्णके ऊपर अनेक शस्त्र चलाए पर उनका कुछ भी असर नहीं हुआ, तब क्रोधित होकर उसने उनपर सुदर्शन चक्र चलाया । चक्र श्रीकृष्ण की प्रदक्षिणा देकर उनकी दाहिनी भुजामें जाकर ठहर गया। श्रीकृष्णने उसी चक्रसे जरासिंधुका सिर काट डाला। उनकी सैनामें जीतके नगारे बजने लगे।
(१८) श्रीकृष्णने चक्ररत्नको मागे रख कर बकदेवजीको