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प्राचीन जैन इतिहास । २० कृष्णकी भोर एक हाथी दौड़ा। वह हाथी मदोन्मत्त यमके समान था । उसे अपनी ओर दौड़ता हुमा देखकर कुमार कृष्णने खड़े होकर उसका एक दांत तोड़ लिया और फिर उसी दांतसे उसे मारने लगे जिससे वह हाथी डरकर भाग गया। गोपोंको उत्साहित कर वे कंसकी सभामें पहुंचे और अपनी सब सेना सजाकर एक जगह खड़े होगए। बलभद्र अपनी भुजाओंको ठोकते हुये कृष्णके साथ रङ्गभूमिमें उतरे और इधर उधर घूमने लगे। कंसकी आज्ञासे महा पराक्रमी चाणूर मादि मल्ल उठे और रङ्गभूमिके चारों ओर बैठ गए । कृष्णने मकस्मात् सिंहनाद किया। कृष्णको देखकर क्रोधित हुमा कंस मल्ल बनकर भाया परन्तु कृष्णने उसके दोनों पैर पकड कर छोटे अंडेके समान भाकाशमें फिगया और फिर उसे जमीन पर दे पटका। उसके प्राण पखेरू उड़ गये । उसी समय देवोंने पुष्पोंकी वर्षा की और जयके नगाड़े बजने लगे।
(१२) एक दिन जीवंद्यशा पतिके मरनेसे दुःखी होकर जरासिंधुके पास गई। अपने पतिकी मृत्युके समाचार पिताको सुनाए, सुनकर जरासिंधुको बहुत क्रोध माया और यादवोंको मारने के लिए अपने पुत्रोंको भेजा । यादव भी अपनी सेना सजाकर युद्धको निकले, उन्होंने जरासिंधुके पुत्रोंको हरा दिया। तब फिर उसने अपराजित पुत्रको भेजा, वह भी हार गया। इसके बाद पिताकी माज्ञासे कालयवन नामक पुत्र चलनेको तैयार हुमा।
(१३) कालयवनको माता हुमा मुनकर अग्रसोची यादवोंने हस्तिनापुर, मथुरा और गोकुल तीनों स्थान छोड़ दिए । कालयवन