________________
१५
पाठ ७ ।
श्री कृष्ण जन्म और उनका पराक्रम ।
(१) माद कृष्ण अष्टमीको देवकीके सातवें महीने महाप्रतापी श्रीकृष्णका जन्म हुआ । जन्म होते ही वसुदेव और बलभद्रने कंसको विना जताये ही नन्द गोपके घर पहुंचा देने का विचार किया । बलभद्रने श्रीकृष्णको उठा लिया और वसुदेवने उसपर छत्र लगाया । रात अंधेरी थी, इसलिये श्रीकृष्णने पुण्य कर्मके उदयसे नगरके देवताने बैकका रूप धारण किया और अपने दोनों सींगोंवर मणियां लगाकर भागेर चलने लगा । उसी समय बाळक के चरणस्पर्श होते ही नगरके बड़े दरवाजे के किवाड़ खुल गये । रात्रिमें किवाड़ खुलते देखकर बंबनमें पड़े राजा उग्रसेनने बड़े मश्चर्य से पूछा । इस समय किवाड़ किसने खोले । यह बात सुनकर बलभद्रने वहाआप चुप रहिये | यह किवाड खोलनेवाला, इस बंधन से आपको शीघ्र छुड़ायगा । वहांसे वे दोनों पिता पुत्र रात ही यमुना नदीपर पहुंचे । नारायण के प्रभावसे यमुनाने भी मार्ग देदिया ।
तासरा भाग
(२) वे दोनों अचरज के साथ यमुनाको पार कर भागे चले। उन्होंने बड़े यत्न से बालिकाको गोदीमें लेकर आते हुए नंदगोपालको देखा । उन्हें देखकर बलभद्रने पूछा- आप रात्रिमें ही भले वय म रहे हैं ? इसके उत्तर में नमस्कार कर नंदगोपालने कहा- मेरी स्त्रीने पुत्र पानेके लिए देवीकी उपासना की थी। उस देवीने पुत्र होनेका आश्वासन देकर आज सबमें ही एक कन्या काकर दी है