Book Title: Prachin Jain Itihas Part 03
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 20
________________ तीसरा भाग थे उस समय मार्गमें जीवोंको घिस हुआ देखकर उन्हें दया भा गई, मौर उन्होंको वैराग्य हो भाया। (३) राजीमती विवाहकी खुशीमें अपने झरोखेपर बैठी हुई बारातकी चढ़ाई देख रही थी। उसने श्री नेमिकुमारको रथ वापिस लौटाते हुए देखा। सखियोंसे पूछनेपर उसे उनके वैराग्यका समाचार मालूम हुआ। ( ४ ) समाचार सुनकर वह एकदम बेहोश होगई। कुछ समयके बाद होशमें आनेपर वह बड़ा खेद करने लगी। (५) उसके मातापिताने बहुत समझाया कि यदि श्री नेमिकुमार वैरागी होगए हैं तो क्या हुआ, भभी उनके साथ तेरा विवाह तो हुआ ही नहीं है । किसी दूपरे सुन्दर राजकुमारके साथ तेरा विवाह करा दिया जायगा । (६) माता पिताकी इन बातोंसे उसे बड़ा दुःख हुमा । उसने कहा-मेरे तो एक पति श्री नेमिकुमार ही हैं. उनके सिवाय सब मेरे पिता पुत्र के समान हैं। इतना कहकर वह श्री नेमिकुमारके मनानेको रैवतक पहाड़पर पहुंची। (७) उसने श्री नेमिकुमारको फिरसे लौट चलनेको बहुत कहा परन्तु उनका मन भडोल रहा, तब राजीमती भी उनके पास दीक्षा लेकर आर्थिका बन गई। (८) राजीमती भगवानके समोशरणकी प्रधान मार्यिका हुई और उसने महान् तप करके सोलहवें स्वर्गमें इन्द्रप्रद प्राप्त किया।

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