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वावीसमो संधि लगा । और तुमने मुझे, पुष्पावतीको सादर दे दिया।" समस्त जन यही जानता कि हैं तुम्हारे घर में नही : जनक मेरे पिता हैं । माता विदेहा है, और बहन जानकी है ।।१-८||
७] अपना समस्त वृत्तान्त कहकर भामण्डल उस प्रदेशकी वन्दनाभक्तिके लिए गया जहाँ महामुनि सत्यभूति निवास करते थे और जहाँ जिनवरके अभिषेकको महाविभूति हो रही थी। जहाँ दशरथके वैराग्यका समय था। जहाँ सीता, राम और लक्ष्मणका विलास था। जहाँ भरत और शत्रुघ्न दोनों मिले हुए थे। भामण्डल अपने पिताको लेकर उस स्थानके लिए गया । पहले उसने, जिनका पैर मोक्षसे लगा हुआ है ऐसे इन्द्रभूति जिनकी बन्दना की, फिर गुरुपरम्परासे श्रमणसंघ की। फिर इसने भरत, लक्ष्मण, राम, शत्रुध्नके साथ बातचीत की। उन्हें बताया कि किस प्रकार वह सीताका भाई है, और किस प्रकार राम और लक्ष्मणका अपराधी साला है। पुण्यके भाजन चन्द्रगतिने परमधर्म सुना और तपश्चरण स्वीकार कर लिया। ददारथ दूसरे दिन जब रामको राज्य देते हैं, तब कैकेयी अपने मनमें उसी प्रकार सन्तान हो उठती है, जिस प्रकार ग्रीष्मकाल में धरती ॥१-५।।
[८] राजा दशरथका प्रत्रज्या-यज्ञ और लक्ष्मीसे अभिराम रामके राज्यकी बात सुनकर द्रोण राजाकी बहन ककेयी भग्न अनुरागवाली हो गयी। जिसके पैर नूपुरोंकी कान्तिरूपी लतासे लिप्त हैं, गलेके आभूषण और करधनीकी प्रभासे जिसका गुह्यभाग स्फुटित है, स्तनोंके ऊँचे भारसे जिसका मध्यभाग नीचा है, जिसके हाथ, नव अशोक वृक्ष के पत्तोंकी कान्तिके समान हैं, सुन्दर आलाप करनेवाली कोयलके आलापके समान जिसकी वाणी है, जिसके केश महामयूरकी पूंछके समान हैं, प्रच्छन्न रूपचाली जो कामदेवकी भल्लिकाके समान है, ऐसी