Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
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(29) को प्राप्त होता है। उत्तमता की इस कसौटी की दृष्टि से निसीहज्झयणं सर्वोत्तम सिद्ध होता है क्योंकि इसमें एकमात्र प्रायश्चित्त का ही अधिकार है इसीलिए इसे जैन प्रायश्चित्त संहिता भी कहा जाता है।
९. प्रस्तुत आगम रहस्यबहुल है। उसे योग्य पात्र को उचित देश-काल में ही पढ़ाया जा सकता है। जो रहस्य को यावज्जीवन धारण न कर सके, अपवादपद का आश्रय लेकर अनाचार में प्रवृत्त हो जाए, ज्ञान, दर्शन आदि के विषय में सूत्रोक्त आचारविधि का सम्यक् पालन न करता हो, उसे इस आगम का ज्ञान तो क्या, श्रवण भी उपलब्ध नहीं हो सकता है। इन्हीं सब विशेषताओं के कारण छेदसूत्रों एवं विशेषतः निसीहज्झयणं को प्रवचन रहस्य कहा गया है। अयोग्य को निशीथ की पीठिका का सूत्रार्थ प्रदान करने वाले को भी प्रवचनघातक माना गया है। व्याख्या ग्रन्थ
१. निशीथ नियुक्ति-आगमों की मूलस्पर्शी पद्यात्मक व्याख्या नियुक्ति कहलाती है। वह व्याख्या साहित्य में सर्वाधिक प्राचीन एवं प्राकृतभाषा में निबद्ध पद्यमय रचना होती है। प्राचीनकाल में सूत्र की वाचना का क्रम अनुयोग पद्धति से होता था। सर्वप्रथम प्रत्येक सूत्र की संक्षिप्त गाथाबद्ध व्याख्या की जाती, जिसे शिष्य गण कंठस्थ कर लेते थे। इसी क्रम से प्राप्त नियुक्ति गाथाओं को उत्तरवर्ती आचार्यों भद्रबाहु, गोविन्दवाचक आदि ने संकलित एवं व्यवस्थित किया एवं व्याख्या क्रम में जहां सूत्रगत पदों या पदसमूहों की अन्य व्याख्या की अपेक्षा हुई, स्वयं गाथाओं का निर्माण कर उन्हें भी उसमें जोड़ दिया। इसलिए यह कहना कठिन है कि किसी नियुक्ति में पूर्ववर्ती परम्परा से प्राप्त गाथाएं कितनी हैं एवं स्वयं उस आगम के नियुक्तिकर्ता की कितनी है?
आयारो के नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाह द्वितीय माने जाते हैं। उन्होंने आयारो एवं आयारचूला के पश्चात् आयारो की पांचवीं चूला की नियुक्ति करने का संकल्प किया था।
निशीथ की नियुक्ति में उसकी सूत्रस्पर्शिक व्याख्या है। उसमें प्रायः सूत्र का संबंध एवं प्रयोजन बताया गया है। सूत्रगत शब्दों की व्याख्या में निक्षेपपद्धति का आश्रय लिया गया है। कालान्तर में भाष्यकार ने नियुक्ति की गाथाओं को भाष्य का ही अंग बना लिया। फलतः भाष्य एवं नियुक्ति परस्पर इतने एकमेक हो गए कि दोनों का पृथक्करण एक दुष्कर कार्य हो गया।
निशीथभाष्य में नियुक्ति सम्मिलित हो गई, इसके कुछ प्रमाण इस प्रकार हैं
१. अनेक गाथाओं के विषय में चूर्णिकार ने नियुक्तिगाथा होने का उल्लेख किया है, जैसे-गा. ५९२, ६०१, ६१४, ६१९, ६३०, ६३९, ६८५ आदि।
२. अनेक गाथाओं एवं अन्य स्थलों में चूर्णिकार ने स्पष्टतः नियुक्तिकार के रूप में भद्रबाहु का अथवा 'भद्रबाहुकृत गाथा' इस रूप में उल्लेख किया है, जैसे
.इदानीं उद्देसकस्य.......भद्रबाहस्वामी नियुक्तिगाथा माह।' इस संदर्भ में ७७, २०७,२०८, २९२, ३२५, ४४३, ५४३, ५४५ आदि गाथाएं द्रष्टव्य हैं।
. अनेक गाथाएं निशीथ भाष्य एवं बृहत्कल्पभाष्य में समान हैं और उन्हें बृहत्कल्पभाष्य के टीकाकार ने नियुक्ति गाथा कहा है, जैसेनिभा. गा. बृभा. गा. निभा गा.
बृभा. गा. १८८३
५५९६ २५०९
६३९३ १९६९
२८७९ ३०५५
१९५४ ३३५१
५२५४ ३०७४
१९७३ आदि। १. निभा. गा. पृ. २५३-जम्हा एत्थ सपायच्छित्तो विधि भण्णति, ४. आनि. गा. ३६६ जम्हा य तेण चरणविसुद्धी करेति, तम्हा तं उत्तमसुयं ।
आयारस्स भगवओ, चउत्थ चूलाइ एस निज्जुत्ती। २. वही, गा. ६२२७ सचूर्णि
पंचमचूल निसीहं तस्स य उवरि भणीहामि। ३. वही, गा. ४९६
५. निभा. भा. २ चू. पृ. ३०७