Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir : संपादकीय : हमें यह पुस्तक प्रस्तुत करते हुए बडा हर्ष होता है । मैंने जीवन में धर्म को समझकर उतारने का हमेशा प्रयत्न किया है और नक्तत्त्व पुस्तक में से पाप तथा प्राश्रव तत्त्व को समझा, तब से धीरे धीरे व्रत ग्रहण की ओर बढा । व्रतों को संपूर्ण अपना लेने के बाद जीवन को सरल तथा सत्यमय बनाने के प्रयत्न चलते रहे और जीव विचार तथा नवतत्त्व दोनों प्रकरणों को पढ़ाने का मौका मिला। उनके पठन पाठन अनुशीलन परिशीलन तथा स्वाध्याय से वे दिल में बैठ से गये हैं और घोरे धीरे धर्मतत्त्व जमता गया है। ___इसी खोज में पंचसूत्र मिला-उसके दो सूत्र अच्छी तरह समझने का प्रयत्न किया। पू. पं०जी श्री भानुविजयजी (अब प्राचार्य) को 'उच्च प्रकाशमा पथे' गुजराती पुस्तक में से पंचसूत्र का विवेचन पढ़ा और प्रथम सूत्र का कुछ समय पाठ भी किया। दूसरे सूत्र से यह पता चला कि श्रावक को किस तरह अपना जीवन जीना चाहिये । [6] For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 122