Book Title: Mukti Ke Path Par
Author(s): Kulchandravijay, Amratlal Modi
Publisher: Progressive Printer

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुस्तक प्रकाशन संबंधी मेरे छोटे भाई का देहान्त सन १६४५ में होने पर उसकी धर्म क्रिया में रुचि देखकर मुझे प्ररणा मिली। उसके स्मारक रूप में एक योजना बनाकर विधि सहित देवसी राई प्रतिक्रमण पुस्तक प्रथम पुष्प के रूप में प्रकाशित की गई । कुछ वर्ष बाद उन पुस्तकों की बिक्री से जो रकम श्राई वह मेरे पास पडी रही। उसमें से 'बारह व्रत का संक्षिप्त परिचय' पुष्प - २ के रुप में भेंट देनेके लिए छपवाया गय और पुष्प - ३ के रूप में 'नव्वाणु पछो शु' छापा गया । पुस्तक के पैसों में ब्याज जोडकर आज तक जो रकम मेरे पास हुई है, वह सब इसमें लगा दी गई है । अपने मातापिता से मिले संस्कारों और छोटे भाई के जीवन से मिली प्रेरणा के उपरांत जीवन में धर्म का प्रभाव श्री जैन श्रेयस्कर मंडल की नवतत्त्व नामक पुस्तक पढने से पडा । पापभीरुता के रूप में धर्म के जीवन में इस प्रवेशने धीमी पर स्थिर गति से प्रगति की। दोनों प्रकरणों को अधिक हृदयंगम करने से धर्मतत्त्व बौद्धिक स्तर पर तथा प्राचरण में अच्छी तरह जमने लगा । [७] For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 122