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मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2
मेवाड़ राज्य का इतिहास मेवाड़ राज्य वर्तमान में राजस्थान के दक्षिण में 23.49 डिग्री से 25.28 डिग्री उत्तरी अक्षांश व 73.01 डिग्री से 75.49 डिग्री तक देशांतर के बीच स्थित है।
मेवाड़ राज्य का पृथक से एक इतिहास रहा है। मेवाड़ की धरा प्राचीन धरोहर से ओतप्रोत रही है जो आज भी शिलालेख, पट्टे (ताम्रपत्र) व अभिलेखों से प्रमाणित है।
मेवाड़ की सीमा विशाल क्षेत्र में स्थित है जिसके लिए मेवाड़ के जैन तीर्थो को पृथक-पृथक भागों में विभाजित किया है जो निम्न पुस्तकों में किया है - 1. उदयपुर नगर के जैन श्वेताम्बर मंदिर एवं मेवाड़ के प्राचीन जैन तीर्थ । 2. मेवाड़ का प्राचीन तीर्थ देलवाड़ा जैन मंदिर 3. मेवाड़ के जैन तीर्थ (उदयपुर एवं राजसमन्द जिलों के जैन श्वेताम्बर मंदिर
का इतिहास) अब आपके हाथों में मेवाड़ के जैन तीर्थ (भाग-2) जिसमें चित्तौड़गढ़ व प्रतापगढ़ जिले के सम्पूर्ण जैन श्वेताम्बर मंदिरो का इतिहास लेखो में
संकलन कर पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया जा रहा है। चित्तौड़गढ़ मेवाड़ का प्रमुख क्षेत्र एवं राजधानी रहा है। चित्तौड़गढ़ का वर्णन करने से पूर्व मेवाड़ को विस्तृत रूप से देखना होगा।
प्राचीनकाल में मेवाड़ की राजधानी मझमिका नगरी रही है जो चित्तौड़ नगर से 10 किलोमीटर दूरी पर स्थित है जो आज भी नगरी के नाम से विख्यात है जिसे आज प्राचीन खण्डहरों में देखे जा सकते हैं। मेवाड़ राज्य में मेर-मेद नामक जाति रहती थी
और इसी आधार पर इसको मेदपाट कहा गया है। मेदपाट संस्कृत का शब्द है, इसके बारे में यह भी उल्लेख है मेद जाति के लोग शाकढिपीय ब्राह्मण के नाई थे जो ईरान की तरफ (शकस्तान) से आना बतलाते हैं। मेवाड़ की प्राचीनता के बारे में कई सर्वेक्षण किये गये हैं।
इसी नगरी के स्थल पर अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण करते हुए अपना डेरा डाला था । चित्तौड़ किले की रात्रिकालीन गतिविधी जानने के लिए "ऊब दीवल का जाबा
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