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होना चाहता हूं
जब नियंत्रण - केन्द्र हाथ से निकल जाता है तब समाप्त होने में किसी को देर नहीं लगती। जीवन की गाड़ी तब तक ही सुरक्षित चल सकती है जब तक ब्रेक या नियंत्रण केन्द्र हाथ में रहता है । जब नियंत्रण केन्द्रों से हाथ हट जाता है तो पग-पग पर खतरा ही खतरा नजर आने लगता है ।
शरीर में अनगिनत नियन्त्रण केन्द्र हैं । मस्तिष्क सबका नियामक है । नाड़ी - संस्थान, रीढ़ की हड्डी, सुषुम्ना आदि भी नियंत्रण केन्द्र हैं। जिस व्यक्ति ने सुषुम्ना में चित्त की यात्रा करना समझ लिया, मस्तिष्क में यात्रा करना जान लिया या शरीर के आगे-पीछे, दाएं-बाएं और ऊपर में यात्रा करना समझ लिया, उसने बहुत रहस्य समझ लिए। एक नियन्त्रण केन्द्र शरीर के ऊपर के भाग में है, एक पीछे के भाग में है, दाएं-बाएं है, मध्य में है। हम इन पांच स्थानों पर शरीर को पारदर्शी बना सकते हैं। हमारा पूरा शरीर चुम्बकीय क्षेत्र है । वह इन पांच भागों में अधिक चुम्बकीय बन सकता है। जब वह पूरा चुम्बकीय बन जाता है तब अतीन्द्रिय चेतना पैदा होती है-अवधिज्ञान पैदा होता है । अवधिज्ञान के पांच प्रकार बनते हैं-आगे के भाग का अवधिज्ञान, पीछे के भाग का अवधिज्ञान, दाएं भाग का अवधिज्ञान, बाएं भाग का अवधिज्ञान, सिर पर का अर्थात् मध्य भाग का अवधिज्ञान । शरीर तथा शरीर के नियंत्रण - केन्द्रों को समझे बिना, इसको कभी चुम्बकीय क्षेत्र नहीं बनाया जा सकता। इसकी विद्युत् का उपयोग नहीं किया जा सकता ।
इच्छाओं पर अनुशासन करने के लिए जरूरी है नियन्त्रण केन्द्रों को समझना । इच्छा भीतर से आती है । प्राणशक्ति के साथ काम करती है । यदि प्राणशक्ति का सहारा न मिले तो इच्छा भीतर उत्पन्न होगी पर बाहर में आकर निष्क्रिय बन जाएगी। भीतर से कोई भी आता है और यदि उसे कोई सहयोग नहीं मिलता है तो वह निकम्मा बन जाता है । बड़े से बड़े व्यक्ति को भी यदि स्थानीय जनता का सहयोग प्राप्त नहीं होता है तो वह आदमी निकम्मा बन जाता है, वह कुछ भी नहीं कर सकता । प्राणशक्ति का सहयोग अपेक्षित होता है ।
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एक लेखक ने संपादक को लिखा कि आपके पत्र में कहानियां छपती हैं, उनके न सिर होता है, न पैर होता है । कितनी अजीब कहानियां छपती हैं ! मैं आपको अपनी कहानी भेज रहा हूं। उसके सिर भी हैं, पैर भी हैं । सम्पादक ने पत्रोत्तर देते हुए लिखा-कहानी अच्छी है । उसके सिर भी हैं और पैर भी हैं, पर उसमें प्राण नहीं है, इसलिए वापस लौटा रहा हूं ।
सिर से भी काम नहीं चलता, पैर से भी काम नहीं चलता, यदि प्राण न हो तो । प्राण हो तो सिर भी काम का होता है और पैर भी काम के होते हैं । मुर्दे का सिर भी काम का नहीं होता और पैर भी काम के नहीं होते। प्राण के साथ ही
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मैं कुछ
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