Book Title: Main Kuch Hona Chahta Hu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 74
________________ मानसिक अनुशासन के सूत्र लिया. उसने सब कुछ जान लिया। सीमा में आबद्ध व्यक्ति हजारों-हजारों उपायों से भी उन्हें नहीं जान पाता। आवश्यकता है, हम अपनी वृत्तियों और संस्कारों तक पहुंचे, आसवों तक पहुंचें। हमारे भीतर आस्रव हैं, झरने हैं। वे निरन्तर बह रहे हैं। वे इतने बड़े स्रोत हैं, झरने हैं कि कभी सूखते ही नहीं। मिथ्यादृष्टि का झरना है, आस्रव है जो सभी झरनों को पानी सप्लाई करता है। एक आस्रव है-अविरति । महान आस्रव और विशाल झरना। इसके कारण नई-नई आकांक्षाएं पैदा हो रही हैं और मन को वह आकांक्षा का पानी निरन्तर मिल रहा है। उस पानी से वह सदा हरा-भरा रहता हैं। प्रमाद का एक झरना है। वह भी छोटा नहीं है, बहुत बड़ा है। इसके कारण आदमी सोता रहता है, जागता ही नहीं। यह महानिद्रा कभी मिटती ही नहीं। यह स्थूल शरीर बेचारा दिन में सात-आठ घण्टे सोता होगा, किन्तु प्रमाद की नींद चौबीस घंटा बनी की बनी रहती है। नींद टूटते ही नहीं, आंखें खुलती ही नहीं। कषाय का आस्रव, झरना भी विशाल है। उसका प्रवाह चारों दिशाओं में फैलता है। अहंकार, कपट, लालच, घृणा, ईर्ष्या, राग-द्वेष, प्रियता-अप्रियता उसके उपजीवी छोटे-छोटे झरने हैं। ये विविध प्रकार के झरने भीतर में बह रहे हैं। सब झरनों का पानी बेचारे मन पर गिरता है और वहां से दूसरों तक पहुंचता है। जो कुछ आता है इस पानी के साथ बहता हुआ आता है। चंचलता भी इसी पानी के साथ आती है। यह पानी सारी गंदगियों को एकत्रित कर लाता है और बेचारे मन की धारा से, मन की प्रणालिका से होकर गुजरता है। लोगों को यह भीतर के झरने दिखाई नहीं देते। मन की नाली. मन की प्रणालिका सबको दिखाई देती है, और लोग सोचते हैं कि यह सारी गन्दगी मन से ही आ रही है। बेचारे मन को दोषी होना पड़ता है, उसकी नलिका को दोषी होना पड़ता है। नाली का अपराध ही क्या है? नगर में बहने वाली गंदी नालियों का अपराध क्या है? उनमें गन्दगी कहां से आती है? क्या नाली गन्दगी को पैदा करती है? नहीं, गन्दगी आती है घरों से, फैक्टरियों से और अन्यान्य औद्योगिक संस्थानों से। परन्तु 'गन्दी' का विश्लेषण नाली के साथ ही जुड़ता है। अरे, नाली गंदी कैसी? वह तो साफ है। जहां से गंदगी आती है, उसका उपचार हम नहीं जानते। हम नाली को साफ करने में ही विश्वास करते हैं। वह साफ होती ही नहीं। गंदगी का स्रोत ऊपर से निरन्तर बह रहा है। जब तक उसकी सफाई या उसका निरोध नहीं होगा. गन्दगी कभी मिटेगी नहीं। हम लोग हमेशा नाली को साफ करने की बात सोचते जा रहे हैं और समस्या से परेशान होते जा रहे हैं। इस प्रकार समस्या का समाधान नहीं होगा। आगे से सफाई करते रहें और पीछे से गन्दगी का प्रवाह सतत चालू रहे तो उस सफाई का कोई अर्थ नहीं होगा, सफाई व्यर्थ होगी। यदि हम वास्तव में चाहते हैं कि सफाई हो तो सफाई वहीं करनी होगी जहां से गन्दगी आ रही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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