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ध्यान एक परम पुरुषार्थ हैं। प्रत्येक पहलू को जानना बहुत आवश्यक होता है। इसलिए प्रत्यक्ष द्रष्टा को अनन्तचक्षु कहा गया है। एक चक्षु से काम नहीं चलता, दो से भी काम नहीं चलता
और तीसरा नेत्र खुल जाने पर भी काम नहीं चलता। जब अनन्तचक्षु खुलते हैं, तभी सत्य हस्तगत होता है । तब न अर्थशास्त्र बचता है, न कामशास्त्र बचता है और न समाजशास्त्र बचता है। कुछ भी नहीं बचता। सबका समावेश हो जाता है। इसीलिए एक सिद्धान्त स्थिर हुआ-ज्ञेय सब कुछ है। संसार में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो ज्ञेय न हो। किसी को ज्ञेय की सीमा से परे नहीं किया जा सकता। जहां ज्ञेय का प्रश्न है वहां कोई भी अछूत नहीं है। वहां सवर्ण और अ-सवर्ण का भेद नहीं है। वहां अच्छे-बुरे, हितकर-अहितकर का प्रश्न नहीं है। ज्ञेय की दृष्टि से जितना मूल्य चेतन तत्त्व का है उतना ही मूल्य पुद्गल का है। पुद्गल भी ज्ञेय और आत्मा भी ज्ञेय। मोक्ष की आत्मा भी ज्ञेय और नारकीय यातना भुगतने वाली आत्मा भी ज्ञेय । भव्य आत्मा भी ज्ञेय तो अभव्य आत्मा भी ज्ञेय। कोई अन्तर नहीं आता। अन्तर आता है हेय और उपादेय के प्रश्न पर।
ध्यान आदमी को निकम्मा बनाता है-यह एक दृष्टि है। एक घंटा ध्यान में बैठने वाला साधक कोई उत्पादक श्रम नहीं करता, न खेती करता है और न कपड़ा बुनता है। यह एक पहलू है। इसका दूसरा पहलू भी है। व्यक्ति श्रम करता है शक्ति से। शक्ति के अभाव में आदमी कोई काम नहीं कर सकता। काम होता है एकाग्रता से। चंचल आदमी काम में कभी सफल नहीं हो सकता। एकाग्रता और शक्ति-ये दोनों कार्य की दक्षता के लिए बहुत मूल्यवान हैं। काम करना एक बात है और दक्षता होना दूसरी बात है। आज के विज्ञान ने दक्षता के विकास का सूत्र दिया। यह उसकी अमूल्य देन है। काम पहले भी होता था, पर दक्षता का विकास आज जितना है, उतना पहले नहीं था। जो काम पहले दस घंटों में होता था, आज वह दस मिनट में निपटाया जा सकता है।
लोग कहते हैं जापान ने बहुत प्रगति की है। प्रश्न हो सकता है कि कारण क्या है? एक दिशान्तरण हुआ है। उनकी दिशा बदली है। उसका मूल कारण है एकाग्रता । जापानी लोगों ने ध्यान के द्वारा बहुत लाभ उठाया। वे स्वयं यह स्वीकार करते हैं कि जापान के लोग जब से ध्यान करने लगे हैं, उन्होंने शरीर-बल पाया है, मनोबल पाया है।
अनेक प्रयोग चलते हैं। ध्यान के विशेष प्रयोग करने वाला व्यक्ति हो, मजबूत ईंटें हाथ में लेता है और उनको चूर-चूर कर देता है। यह कला ध्यान के द्वारा विकसित हुई है। लड़ने की कला विकसित हुई है। एक निहत्था आदमी शस्त्र वाले व्यक्ति के साथ लड़ सकता है और विजय पा लेता है। यह भी ध्यान का प्रयोग है।
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