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मैं मनुष्य हूं (२)
१०५ - ध्यान का अर्थ है-यथार्थ का अनुभव । इसमें कल्पना की आवश्यकता ही नहीं है। श्वासप्रेक्षा में श्वास का अनुभव करते हैं। यह यथार्थ है। इसमें कल्पना को अवकाश नहीं है। शरीर प्रेक्षा में, शरीर में घटित होने वाले परिवर्तनों का अनुभव करते हैं। यह यथार्थ है, इसमें कल्पना की जरूरत ही नहीं है। ध्यान में यथार्थ के साथ-साथ चलना है। कल्पना का भी अपना मूल्य होता है, किन्तु यथार्थ को छोड़कर केवल कल्पना में ही बहते जाना उचित नहीं है। इस स्थिति में कल्पना भी भंयकर बन जाती है। यथार्थ की छाया में कल्पना भी कुछ काम दे सकती है। केन्द्र में यथार्थ होगा तो कल्पना भी उपयोगी बन सकती है। केन्द्र में कल्पना नहीं होनी चाहिए।
मनुष्य ने ज्ञ परिज्ञा और प्रत्याख्यान परिज्ञा, जानने वाली दृष्टि और त्यागने वाली दृष्टि का विकास किया। इसी के आधार पर समूचे दर्शन का विकास हुआ है। आज दर्शन का अर्थ भी बदल गया है। उसका अर्थ मात्र जानना रह गया है। पुस्तकीय ज्ञान को ही दर्शन मान लिया गया है। उसमें अनुभव को कोई महत्त्व नहीं मिला। .. भारत में दर्शन की चेतना का विकास संयम, अहिंसा, अस्तित्वगत एकता या समानता के साथ हुआ था। यही दर्शन की महत्ता है। जहां अस्तित्वगत एकता या समानता की अनूभूति नहीं होती, वह दर्शन केवल बौद्धिक व्यायाम या तर्कशास्त्र की प्रणाली मात्र रह गया है। आज मैं दर्शन को तर्कशास्त्र से भिन्न नहीं देख रहा हं। दर्शन का अर्थ ही हो गया तर्कशास्त्र। आज के दर्शन का विद्यार्थी जानता है कि तर्क को छोड़ने के बाद दर्शन में शेष कुछ नहीं बचता। प्रारम्भ से अन्त तक तर्क ही तर्क। तर्क द्वारा समर्थन और विरोध, खण्डन और मण्डन ।
आज की प्रमुख चर्चा होती है कि धर्म की कसौटी तर्क या बौद्धिकता होनी चाहिए। जो धर्म तर्क और बुद्धि की कसौटी पर खरा न उतरे, वह धर्म नहीं हो सकता। यह बात प्रारम्भ में ठीक लगती है। कोई भी आदमी किसी भी सचाई को स्वीकारता है तो उसकी कसौटी होती है तर्क और बुद्धि। तर्क और बुद्धि के आधार पर दर्शन की कुछ यात्रा की जा सकती है। वे सीढ़ियां बन सकती हैं। कुछ दूर आरोहण करने के लिए, पर वे शिखर तक नहीं पहुंचा पातीं। सीढ़ियों से दो-चार मंजिलों तक पहुंचा जा सकता है। परन्तु जहां सौ मंजिले मकान पर चढ़ने की बात आए, वहां सीढ़ियों से चढ़ पाना दुरूह हो जाता है। आदमी थक कर चूर हो जाता है। आज की स्थिति तो ऐसी बन गई है कि आदमी दुमंजिले या चार मंजिले मकान पर भी सिढ़ियों से चढ़ना नहीं चाहता। वह लिफ्ट का प्रयोग करके ही ऊपर जाता है। जब लिफ्ट खराब हो जाती है तब ऊपर चढ़ पाना मुश्किल हो जाता है।
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