Book Title: Main Kuch Hona Chahta Hu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 141
________________ १३४ कुछ 1 एक स्वतंत्रता की चेतनाभूमि है, जहां हर व्यक्ति स्वतन्त्रता से काम करे । आपके मन में प्रश्न हो सकता है - फिर व्यवस्था क्यों ? अनुशासन क्यों ? यह व्यवस्था, अनुशासन तो अनेक आदमी हैं इसीलिए है । इसे आप ध्यान के साथ न जोड़ें। यह प्रश्न कोई ध्यान का प्रश्न नहीं है, यह तो समूह का प्रश्न है । यह व्यवस्था और बाहर का नियम है, जहां समूह होता है वहां जरूरी होता है। ध्यान में तो पूरी स्वतंत्रता है । मैं कितना ही बलपूर्वक कह दूं कि आपको ध्यान करना ही पड़ेगा । मान लीजिए, आपने उस आग्रह को नहीं टाला। आंखें बन्द कर लीं. बैठ गए। क्या ध्यान हो गया ? ध्यान कहां होगा? शरीर ध्यान की मुद्रा में बैठ गया पर ध्यान तो तब होगा कि जब आप करना चाहेंगे। नहीं करना चाहेंगे तो फांसी की सजा भी किसी को ध्यानी नहीं बना सकेगी। होना चाहता हूं जो क्रिया अपनी आत्मा की सर्वथा स्वतंत्र और पूर्ण स्वतंत्र चेतना की क्रिया है उसे कभी आरोपित नहीं किया जा सकता, थोपा नहीं जा सकता। यह बिलकुल स्वतंत्रता का प्रश्न है और इसमें बाहरी अनुशासन काम नहीं देता । किन्तु आश्चर्य तो वह होता है कि एक व्यक्ति स्वयं वैसा आचरण करता चला जाता है, पर पिता को अपने पुत्र का, पति को अपनी पत्नी का वही काम अच्छा नहीं लगता। इससे बड़ा क्या आश्चर्य होगा और क्या विडम्बना होगी ! रसोई में कांच की गिलास गिर गई, फूट गई और थोड़ी देर बाद एक झंकार हुआ और वह भी समाप्त हो गया। लड़का बाहर बैठा था, उसने पिता से कहा- कांच की गिलास फूटी है, लगता है- मां के हाथ से फूटी है । तो पिता के मन में एक जिज्ञासा जाग गई। नौकर को भेजा कि पता करो किसके हाथ से फूटी ? क्या हुआ है ? नौकर पता करके आया, बोला-सेठानीजी के हाथ से कांच की गिलास गिरी, फूट गई। पिता ने अपने पुत्र से कहा- तुम तो यहां पर बाहर बैठे थे, तुम्हें कैसे पता चला? क्या कोई अतीन्द्रिय ज्ञान हो गया? क्या कोई तृतीय नेत्र खुल गया है? कैसे पता चला की तुम्हारी मां के हाथ से फुटी है? उसने कहा- - मुझे पता चल गया। पिता ने पूछा-कैसे पता चला? बेटे ने कहा- यह तो स्वाभाविक ही है कि मां के हाथ से फूटी थी इसीलिए एक मिनट में ही उसका झंकार समाप्त हो गया । मेरी पत्नी के हाथ से फूटती तो यह झंकार चलता ही रहता, मां का झंकार भी साथ ही चलता । Jain Education International हमारी बड़ी विचित्र स्थिति चलती है । एक आदमी स्वयं आचरण करता जा रहा है, स्वयं व्यवहार करता जा रहा है, वैसा ही व्यवहार अपने से छोटा कस्ता है तो बड़ा अप्रिय लगता है। शराबी पिता अपने पुत्र के लिए चाहता है कि वह शराबी न हो जाए। एक धूम्रपान करने वाला नहीं चाहता कि लड़का भी धूम्रपान For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158