Book Title: Main Kuch Hona Chahta Hu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 144
________________ मैं मानसिक संतुलन चाहता हूं १३७ I परगना जिले में । बतलाया गया कि वे लोग निरन्तर रूखा भोजन करते थे चिकनाई नहीं खाते थे इसलिए उनमें गुस्सा ज्यादा बढ़ गया और जो तपस्वी होते हैं. ज्यादा उपवास करते हैं, रूखा भोजन करते हैं उनमें गुस्से की मात्रा बढ़ जाएगी। प्रसिद्ध है तपस्वियों का गुस्सा । कितने क्रोधी होते थे वे । दुर्वासा के बारे में प्रसिद्ध बात है। तपस्या के साथ गुस्सा बढ़ेगा । तपस्या के साथ ध्यान चलेगा तो ऊर्जा ध्यान में खप जाएगी, गुस्सा नहीं बढ़ेगा। कोरी तपस्या ही चलेगी तो गुस्सा बढ़ने की संभावना है। रूखे भोजन से गुस्सा बढ़ जाता है, स्वभाव के चिड़चिड़े होने में, लड़ाई-झगड़े की आदत ज्यादा होने में भोजन का भी बहुत बड़ा हाथ है और इस बात पर अभी हम ध्यान ही नहीं देते हैं । हम भोजन को तो ऐसा मानते हैं कि यह पेट क्या है-ग - गड्ढा है । 'है । खाली है और भर दो, बस । अरे ! किससे भरोगे ? यह सोचने की क्या जरूरत है? भूख लगी और गड्ढा भर गया। बस, अब ठीक है। गड्ढा तो भर गया पर वह भरा हुआ गड्ढा क्या करेगा, इसका भी कोई अनुमान हमें होना चाहिए । परिणाम क्या होगा? उधर भी तो हमारा ध्यान जाना चाहिए। उस बात पर ध्यान नहीं जाता। ध्यान करने वाले व्यक्ति के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न है - भोजन का विवेक । आपके सामने प्रश्न होगा कि आज की गरीबी में संतुलित भोजन की बात सोची जा सकती है? कितना मंहगा हो गया भोजन ? एक सामान्य गरीब आदमी, सामान्य आजीविका वाला आदमी कैसे यह कर सकता है और आज का शिक्षक भी कोई समृद्ध व्यापारी तो नहीं है । समृद्धि तो नहीं है। बड़ी कठिनाइयां हैं- आजीविका के सामने। पांच सौ, सात सौ या हजार रुपये मिलते हैं तो चटनी हो जाते हैं, रोटी की बात नहीं, कोरी चटनी में चले जाते हैं। इस भयंकर मंहगाई में संतुलित भोजन की बात कैसे हो सकती है? प्रश्न है, सचमुच प्रश्न है। पर कोई प्रश्न ऐसा नहीं होता कि जिसके साथ समाधान न जुड़ा हुआ हो संतुलित भोजन की भी ऐसी तालिकाएं हैं कि जो सामान्य भोजन में पूरी हो सकती हैं । तुलसी अध्यात्म नीडम् का एक यह भी कार्यक्रम है कि संतुलित भोजन के बारे में प्रशिक्षण देना । शिविरार्थियों को यह समझाना और वहां ध्यान करने के लिए, साधना करने के लिए जो लोग आते हैं, उन्हें इस विषय पर प्रशिक्षित करना कि सामान्य आर्थिक व्यवस्था में भी भोजन को कैसे संतुलित किया जा सकता है । बहुत अच्छा प्रोटीन दूध से मिलता है। जीरा तो सामान्य भोजन में काम आने वाली चीज है, उसमें लोहा होता है और भी सामान्य - सामान्य चीजों में ऐसे तत्त्व हैं । बात केवल यही है कि उनके विषय में हमारी जानकारी नहीं और कभी इस दृष्टि से सोचा नहीं कि भोजन संतुलित होना चाहिए । 1 शरीर में अनेक अंग काम कर रहे हैं । तिल्ली, गुर्दा, हार्ट, मस्तिष्क, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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