________________ मनुष्य में विज्ञान है, विवेक की चेतना है। पशु में यह नहीं है। यही मनुष्य की विशेषता है। मनुष्य की विशिष्टता का दूसरा हेतु है- चेतना विकास का बोध और उसकी क्रियान्विति। प्राणी-जगत् में चेतना है, किन्तु चेतना के विकास का बोध नहीं है और करने की क्षमता भी नहीं है। ___ 'मैं मनुष्य है-यह अस्तित्व की स्वीकृति है। मैं कुछ होना चाहता हूँ'- यह परिष्कार की स्वीकृति है। इस परिष्कार के तीन सूत्र हैं-व्यवहार का परिष्कार, आचार का परिष्कार और संस्कार का परिष्कार। व्यवहार के परिष्कार का अर्थ है- क्रूरता की समाप्ति, करुणा की प्रतिष्ठा। आचार परिष्कार का अर्थ है-क्रूरता की समाप्ति , समता की प्रतिष्ठा। संस्कार के परिष्कार का अर्थ है- आवेगों की समाप्ति, सहिष्णता की प्रतिष्ठा। प्रेक्षा ध्यान की प्रक्रिया तीनों परिष्कारों की घटक है। उससे व्यक्ति का व्यवहार, आचार और संस्कार बदलता है। 'मैं कुछ होना चाहता हूँ। मैं ऐसा मनुष्य होना चाहता हूं जिसमें करुणा, समता और सहिष्णुता की प्रतिष्ठा हो। _ मैं ऐसा चेतन-सम्पन्न मनुष्य होना चाहता हूँ जिसमें मृदुता, समता और शान्ति की त्रिवेणी प्रवाहमान हो।। __मैं दुःख में से सुख निकालने वाली चेतना से सम्पन्न मनुष्य होना चाहता हूँ। ___ मैं अपूर्णता से पूर्णता की ओर प्रस्थान करनेवाली चेतना से सम्पन्न होना चाहता हूँ। __ मैं हूँ' की चेतना से आगे बढ़कर होने की चेतना को हस्तगत करनेवाला मनुष्य होना चाहता हूँ। 'बस, यही है 'मैं कुछ होना चाहता हूँ की प्रतिध्वनि। -आचार्य महाप्रज्ञ चरण विज्जा का पमाक्खा जैन विश्व रिती लाडनू जैन विश्व भारती Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only लाडन-3४१30हाराज.)