Book Title: Main Kuch Hona Chahta Hu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 140
________________ में मानसिक संतुलन चाहता हूं १३३ लग जाएंगे और तमतमा उठेगे। मनुष्य में यह क्षमता है कि आवेग की स्थिति होने पर भी वह अनाविष्ट रह सकता है और आवेश पर नियन्त्रण कर सकता है। इस चेतना का विकास मनुष्य ने किया इसीलिए वह संतुलन का जीवन जी सकता है। एक छोटा बच्चा भी उत्तेजना में आ जाता है। बड़ा आश्चर्य होता है कि दो-चार वर्ष के बच्चे भी इतना गुस्सा करते हैं कि देखते ही बनता है। एक भाई आया और आकर बोला कि यह छोटा बच्चा है, इसे गुस्सा बहुत आता है। उसकी मां बैठी थी, पिता भी बैठा था। मैंने पूछा उसकी मां से कि गुस्सा तुम्हें ज्यादा आता है या इसके पिता को गुस्सा ज्यादा आता है। उसकी मां ने कहा-उसके पिता को। और शिकायत भी पिता कर रहा था। मैंने कहा कि यह तो आनुवंशिकता है, पैतृक संस्कार है। तुम स्वयं इतना गुस्सा करते हो और बच्चा इतना गुस्सा करता है तो तुम्हें बुरा क्यों लगना चाहिए? नहीं लगना चाहिए। बड़ा आश्चर्य होता है, पिता गलियां बके, गुस्सा करे, कुछ भी करे, बुरा नहीं और लड़का वैसा करता है तो बुरा लगता है। यह बड़ी अजीब मन:स्थिति है। जब मैं स्वयं करता हूं और वैसा सामने वाला करता है तो मुझे बुरा क्यों लगना चाहिए। दूसरे के आचरण बुरे लगें तो अपने आचरण भी बुरे लगने चाहिए। पर वे तो कहते हैं कि हम तो अब बड़े हो गए, यह तो ऐसे ही चलेगा, इसमें अब क्या फरक पड़ने वाला है? हर आदमी दूसरे को सुधारने की बात ज्यादा करता है। ध्यान करने वाला व्यक्ति कभी दूसरे को सुधारने की बात नहीं करेगा। दूसरे को सुधारने की बात राजनीति की बात है और अपने आपको सुधारने की बात आत्मानुशासन की या ध्यान की बात है। ध्यान करने वाला व्यक्ति अपना प्रयोग करेगा या अपने को अच्छा बनाने का प्रयत्न करेगा। दूसरा कोई चाहेगा तो मार्गदर्शन दे सकेगा कि यह मार्ग है तुम चाहो तो करो, न चाहो तो जैसी तुम्हारी इच्छा। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं । हम अध्यापकों का शिविर ले रहे हैं। पहले पुलिस वालों ने ध्यान का अभ्यास किया, फिर और लोगों ने किया। यह शिविर का सिलसिला बराबर चल रहा है। हम इस बात को सदा मानकर चलते हैं कि कौन व्यक्ति क्या कर रहा है? अभ्यास कर रहा है या नहीं कर रहा है? रुचि ले रहा है या नहीं ले रहा है? जानते हैं, पता है कि क्या कैसा हो रहा है, फिर भी हमारा कोई आग्रह नहीं कि ऐसा ही करना होगा। फिर आरोपण हो जाएगा। ध्यान है वहां आरोपण नहीं चल सकता। मात्र मार्गदर्शन हो सकता है। यह मार्ग है, आप चाहें तो करें, न चाहें तो आपकी स्वतन्त्रता है। जहां ध्यान की स्वतंत्रता में ही बाधा आए तो फिर वह ध्यान नहीं वह तो फिर एक दंडारोपण हो गया, एक कारावास हो गया। यह कारावास नहीं, यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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