Book Title: Main Kuch Hona Chahta Hu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 128
________________ १२१ मैं आत्मानुशासन चाहता हूं हम भी जब फूल तोड़ते जाएंगे, पत्तियां तोड़ते जाएंगे तो कभी भी अन्त नहीं होगा। फूल को सींचों, पत्तियों को सींचो काम नहीं बनेगा। फल तोड़ो, पत्तियां तोड़ो, कभी काम नहीं बनेगा। सींचना होगा तो जड़ को ही सींचना होगा। ये ऊपर के उपचार. ये तात्कालिक और सामयिक उपचार बहुत उपयोगी नहीं हो सकते। ध्यान का विकास इसलिए हुआ था कि आदमी सामयिक उपचार कब तक करेगा। आखिर कब अन्त होगा इस श्रृंखला का। कोई अन्त नहीं होगा। एक बात सुनी और अच्छी लगी। मन पर प्रभाव भी हुआ, पर कल वैसे के वैसे। कल की बात तो बहत लम्बी बात हो जाती है। दो घंटा के बाद वैसे के वैसे, क्योंकि वह सामयिक उपचार था, एक शाब्दिक उपचार था। उसे नशे की गोली भी कहा जा सकता है। किन्तु ध्यान भीतर तक पहुंचाने वाली प्रक्रिया है। वह अवचेतन मन को झंकृत करने वाली और उसका शोधन करने वाली प्रक्रिया है। उस पर जो मैल जमा हुआ है, उस पर जो दोष जमे हुए हैं, वहां संस्कार की परतें गहरी जमी हुई हैं, उनको, उखाड़ना और इतना उखाड़ देना कि पूरी धुलाई कर देना। यह ब्रेनवाशिंग की प्रक्रिया भी नहीं है। वह भी ऊपर की प्रक्रिया है। मस्तिष्क की धुलाई भी ऊपर की बात है। हम तो पूरे ग्रंथि-तंत्र की धुलाई की बात कर रहे हैं, जहां से सारे व्यवहार और आचार की प्रेरणाएं मनुष्य को उपलब्ध हो रही हैं। ध्यान को न ऊपर की घटना समझें, न बाहर को छूने वाला घटना समझें और न सतही उपक्रम समझें। यह बहुत गहरे को छूने वाला उपक्रम है और इसीलिए है कि ध्यान करने वाले व्यक्ति में कभी-कभी क्रोध भयंकर रूप से जाग जाता है, भयंकर वासना जाग जाती है, भंयकर विकार जाग जाते हैं। वह घबरा जाता है कि चला था ध्यान करने और लेने से देना पड़ा। आप मत घबराइये, इतने मात्र से नहीं जागेगी, थोड़े स्पर्श से नहीं जागेगी। यह उन लोगों में जागती है जो बहुत गहरे में चले जाते हैं। बहुत गहरे में ध्यान की अवस्था में उतरते हैं और जब भीतर की धुलाई शुरू होती है तो भला इतने दिन की जमी हुई वासनाएं भी सीधी हार कैसे मान लेंगी! वे भी तो अपना प्रतिरोध करेंगी, फुफकारेंगी और इतनी भयानक फुफकार करती हैं कि आदमी घबरा जाता है। उसी अवस्था में गुरु के मार्ग-दर्शन की जरूरत होती है कि यह घबराने की बात नहीं, यह शुभ लक्षण है, शुभ संकेत है इस बात का कि भीतर की पूरी सफाई हो रही है। इस सचाई को हम न भूलें कि एक कड़े-करकट का ढेर है। सफाई करनी है तो जैसे-जैसे हम सफाई करेंगे नीचे से दुर्गन्ध ही आएगी। बदबू आएगी। यह कभी नहीं होता कि हम पूरी सफाई करें और बदबू न आए। जो जमा हुआ है वह तो निकलेगा ही। उसका शोधन नहीं हुआ तो विकार भीतर का भीतर रहकर अपनी प्रतिक्रिया करेगा और आदमी को सदा बीमार बनाए रखेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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