Book Title: Main Kuch Hona Chahta Hu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 133
________________ १२६ मैं कुछ होना चाहता हूं कौन है? सामान्य आदमी तो दो-चार या पांच प्रतिशत को ही काम में लेता है। सात प्रतिशत को काम में लेने वाला एक अच्छा आदमी, भाग्यशाली आदमी बन जाता है और दस प्रतिशत को काम में लेने वाला तो महान आदमी, बड़ा आदमी बन जाता है। इस प्रकार नब्बे प्रतिशत शक्तियां तो सोई-की सोई पड़ी हैं। उन शक्तियों को जगा सकें, उन शक्तियों को प्रकट कर सकें, उस महास्रोत को खोल सकें तब कोई काम बनता है और तब यह अनुशासन प्रगट होता है। उस अनुशासन को, उन शक्तियों को जगाने की प्रक्रिया ध्यान के सिवाय आज तक कोई नहीं खोजी गई। उस महान अज्ञात स्रोत को उपलब्ध करने का उस अनन्तकाल से बन्द दरवाजे को खोलने के लिए कोई चाबी बन सकता है तो वह ध्यान बन सकता है। शरीर का अनुशासन बहुत कठिन होता है तो श्वास का अनुशासन और भी कठिन है। मैं आपसे कहूं कि इस कमरे में बैठने वाले व्यक्ति पांच मिनट श्वास नहीं लेंगे। कुम्भक करना होगा। पांच मिनट नाक को बिलकुल बन्द रखेंगे। मुझे लगता है कि कमरे में कोई मिलेगा ही नहीं। सब अपने-अपने आसन लेकर विदा हो जायेंगे कि जहां ऐसी असंभव बात कही जाती है वहां हम बैठकर ही क्या करेंगे? कोई शास्त्रीयसंगीत का कार्यक्रम था। लोगों को निमन्त्रित किया गया था। हाल खचाखच भर गया। संगीत शुरू हुआ। कोई सिनेमा तो था नहीं। अब आलाप शुरू हुआ तो आधा-पौन घंटा तो आ.............आ...............आ...............करने में ही लग गया। लोगों ने सोचा कि अरे, यह क्या हो रहा है, सब उठकर चलते बने। सभी चले गए। एक आदमी बैठा रहा। आधा-पौन घंटा तो संगीतज्ञ की आंख ही नहीं खुली। जब आंख खुली तो देखा कि हाल तो खाली है, केवल एक आदमी बैठा है। उसने कहा-चलो, कोई बात नहीं। शास्त्रीयसंगीत बड़ा दुरूह होता है। लोग चले गए. कोई बात नहीं, लेकिन मुझे संतोष है, कम से कम अच्छा श्रोता तो मुझे मिला। वह बोला-'बाबूजी! मैं संगीत-वंगीत कुछ नहीं जानता। यह जो दरी बिछी हुई है उसे ले जाने के लिए बैठा हूं।' मुझे लगता है कि दरी ले जाने वाला बैठा रहा, पर मैं कह दूं कि पांच मिनट श्वास नहीं लेना है तो दरी वाला भी नहीं रहेगा। उसके लिए भी मुसीबत है, वह भी चलता बनेगा। इतना कठिन होता है श्वास का संयम! जो लोग श्वास शुरू करते हैं वे श्वास को ठीक लेना सीखते हैं। सम्यक् श्वास होता है-भलीभांति श्वास को लेना, भलीभांति छोड़ना और धीमे-धीमे रोकने का, संयम का अभ्यास करनो। श्वास का संयम होता है. श्वास का अनुशासन होता है। तीसरा है-प्राण का अनुशासन । यह उससे भी कठिन है, बड़ा कठिन है। श्वास का पता तो चलता है कि आ रहा है। यह जीवन का लक्षण है। श्वास चलता है तो आदमी जिन्दा है, श्वास नहीं आएगा तो आदमी कैसे जीएगा? पता चलता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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