Book Title: Main Kuch Hona Chahta Hu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 135
________________ १२८ मैं कुछ होना चाहता हूं दिया जाता है कि विशुद्धि-केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित करें, कंठ की प्रेक्षा करें। जैसे-जैसे इसके गूढ़ रहस्य आपकी समझ में आते जाएंगे तब सही मूल्यांकन होगा कि हम क्या कर रहे हैं। अन्यथा तो ऐसे लगता है कि कंठ को देखो, इस जीभ को देखो, इनको तो क्या देखना है? रोज खा रहे हैं, देख रहे हैं जीभ को। स्थूल बात को पकड़ते हैं, समझ में नहीं आता। जैसे-जैसे गहरे उतरेंगे, रहस्य को पकड़ेंगे तब ज्ञात होगा कि कंठ को देखना कितना मूल्यवान होता है। जिस व्यक्ति ने कंठ पर कायोत्सर्ग करना सीख लिया, स्वरयंत्र को शिथिल करना सीख लिया, उसने बहुत सारी समस्याएं हल कर लीं। एक प्रश्न हो सकता है कि सामयिक समस्याएं हल कर लें तो आन्तरिक समस्याओं का समाधान भी मिल जाए, किन्तु समस्या केवल आंतरिक ही तो नहीं है। समस्या केवल आवेगात्मक या संवेगात्मक ही तो नहीं है। यथार्थ की समस्याएं भी मुंह बाए खड़ी है। गरीबी है तो रोटी की चिन्ता, परिवार है तो लड़के-लड़कियों को पढ़ाई की चिंता, शादी की चिंता, कितना दहेज, कितनी यथार्थ की चिंताएं। ध्यान करने से वे समस्याएं नहीं सुलझेंगी। आपने दस दिन ध्यान का अच्छा अभ्यास किया, घर पर गए, ऐसा तो कोई जादू नहीं होगा कि लड़के-लड़कियों की शादी भी मजे में हो जाएगी, पढ़ाई के खर्चे के बिल भी आप चुका देंगे। यह तो नहीं होगा। यथार्थ की समस्याओं का समाधान करना पड़ेगा, तभी समाधान मिलेगा। बड़ी समस्या है। तो फिर ध्यान एक सामयिक उपचार ही रहा कि यहां दस दिन बैठ रहे, आराम से रहे, कायोत्सर्ग करते रहे। अच्छा लगा और जैसे ही उस भट्टी में गए वैसे ही आंच आने लगी। यह एक स्वाभाविक बात है। अगर कोई आदमी यह सोचे कि ध्यान के द्वारा खेती भी हो जाएगी, रोटी भी मिल जाएगी, गरीबी भी मिट जाएगी, विवाह-शादियां भी हो जाएंगी, पढ़ाई का खर्चा भी मिल जाएगा, कपड़े भी मिल जाएंगे तो ध्यान को ऐसा कल्पवृक्ष मान लिया कि सब कुछ हो जाएगा। धर्म को भी कुछ लोग कहते हैं कि धर्म करो, सब कुछ हो जाएगा, मैं मानता हूं कि इससे बड़ा कोई झूठ नहीं हो सकता। यह तो बड़ा झूठ है। जिसकी जितनी सीमा, उसका उतना ही आकलन होना चाहिए। ध्यान कोई अनन्त और असीम शक्तिशाली नहीं है। ध्यान की भी अपनी सीमा है। वह अपनी सीमा में ही काम कर सकता है। आपके मानसिक तनाव को, भीतर से आने वाले तनाव को, आवेगों, संवेगों से आने वाले तनाव को मिटा सकता है। आप यह समझें कि वह रोटी भी उपलब्ध करा देगा तो बहुत झूठी कल्पना होगी। पर एक बात और समझें कि ध्यान रोटी तो नहीं दे सकता, विवाह शादी का खर्चा तो नहीं दे सकता, पढ़ाई का बिल व होटल का बिल चुकाने की बात तो नहीं कर सकता किन्तु इन यथार्थ की समस्याओं से जूझते समय जो परेशानियां होती हैं उनसे जरूर आपको बचा लेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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