Book Title: Main Kuch Hona Chahta Hu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 137
________________ मैं मानसिक सन्तुलन चाहता हूं हमारे पास काम करने लिए तीन साधन हैं-शरीर, वचन, और मन । इन तीन साधनों से हम जीवन-यात्रा का संचालन कर रहे हैं। शरीर प्रमुख है। उसके बिना कुछ नहीं होता। वह पहली बात है। वचन इसलिए प्रमुख होता है कि बिना उसके सामाजिक संपर्क नहीं जुड़ता। वचन एक माध्यम है सामाजिक संपर्क का। एक आदमी दूसरे आदमी से जुड़ता है, उसमें सबसे बड़ा माध्यम वाणी बनती है। जिनके पास वचन नहीं है, वाणी नहीं है, वे समाज की रचना नहीं कर सकते। छोटे-मोटे टोले बना सकते हैं, पास में रह सकते हैं पर सामाजिक व्यवस्था की स्थापना नहीं कर सकते। एक बहुत बड़ा साधन है-हमारा वचन । इन दोनों से भी शक्तिशाली माध्यम है हमारा मन, जिसके द्वारा मनुष्य ने कुछ विशेषता उपलब्ध की है। शरीर सब प्राणियों के होता है। भाषा सबमें नहीं होती पर पशु जगत में भी होती है। किसी भाषा में दो शब्द मिलते हैं, किसी भाषा में चार शब्द मिलते हैं और किसी भाषा में छह शब्द मिलते हैं। आजकल पशुओं और पक्षियों की भाषा का भी पर्याप्त अध्ययन किया गया है। संपर्क की दृष्टि से शरीर से ज्यादा मूल्य हो जाता है वाणी का और वाणी से ज्यादा मूल्य हो जाता है मन का, क्योंकि मन सब प्राणियों में नहीं होता। जिनमें भाषा नहीं है उनमें मन नहीं होता। जिनमें भाषा है उनमें भी मन पूरा विकसित नहीं होता। मनुष्य के पास पूरा विकसित मन है। उनमें बोलने की क्षमता भी है। और चिंतन करने की क्षमता भी है। एक आदमी तोता खरीदने गया। दुकान पर जाकर पूछा कि तोता चाहिए। कई पिंजड़े दिखलाए। मूल्य पूछा तो बतलाया कि सौ रुपये लगेंगे। बोला-बहुत मूल्य है। दुकानदार बोला-'मूल्य बहुत है पर यह बोलना जानता है।' 'अच्छा', कह कर ग्राहक चला गया। दूसरे दिन आया एक पिंजड़ा लेकर और बोला कि मुझे तोता बेचना है। दुकानदार ने पूछा-कितना मूल्य है? उसने कहा-'पांच सौ रुपया।' इतना मूल्य? मैं सौ रुपयों में तोता देता हूं, दुकानदार ने कहा। वह बोला तुम्हें पता नहीं है। तुम्हारा तोता बोलना जानता है, मेरा तोता बोलना नहीं जानता, बड़ा दार्शनिक है, चिंतन करना जानता है। चिंतन में ही मस्त रहता है। बोलने वाले तोते के सौ रुपये लगते हैं तो चिंतन करने वाले के पांच सौ रुपये होनी ही चाहिए। बोलने से अगला विकास है चिंतन करना, मनन करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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