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ध्यान एक परम पुरुषार्थ
___ ध्यान करना छोड़ दिया। शक्ति का उपयोग तो चल रहा है, किन्तु वह विनाशकारी या उल्लासकारी उपयोग मात्र है, कल्याणकारी नहीं। कल्याणकारी श्रम, कल्याणकारी कर्म और कल्याणकारी कर्मण्यता जो चाहिए, वह नहीं चल रही
है।
___ ध्यान के द्वारा व्यक्ति में कर्मजाशक्ति जागती है, चेतना का जागरण होता है और दिशा बदल जाती है। फिर वह व्यक्ति प्राथमिकता देगा कल्याणकारी कर्म को। वह उल्लासकारी कार्य उतना ही करेगा. जितना आवश्यक है। वह विनाशकारी कर्म कुछ भी नहीं करेगा। जब तक समाज में ध्यान करने की प्रवृत्ति नहीं जागेगी, चित्त को निर्मल बनाने की प्रक्रिया हस्तगत नहीं होगी तथा चित्त के कषायों को सामाजिक संघर्षों में जमने वाले मैलों को, प्रतिक्रियाओं, विवादों और अवसादों को धो डालने की प्रक्रिया हाथ नहीं लगेगी तब तक कल्याणकारी कर्म सबसे कम होगा, उल्लासकारी कर्म उससे अधिक और विनाशकारी कर्म उससे भी अधिक होगा। यह तरतमता दोनों दिशाओं में है, इसका आप स्वयं अनुभव करें । जब दिशा स्पष्ट होगी तब स्वयं ज्ञात हो जायेगा कि ध्यान करने वाला निठल्ला या निकम्मा बनता है या वह ध्यान के द्वारा किसी विशिष्ट शक्ति और चेतना का जागरण करता है।
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