________________
९८
मैं कुछ होना चाहता हूं
नाम आने लगे हैं। कुछ विश्वविद्यालयों में इस वैज्ञानिक इतिहास के साथ भारतीय वैज्ञानिकों के नाम भी जुड़ने लगे हैं और प्राचीन वैज्ञानिकों की खोज का विभाग भी कहीं-कहीं खुला है। परन्तु पुराने लोगों को हम वैज्ञानिक तो मानते ही नहीं हैं।
प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक योगियों ने कितनी बड़ी अद्भुत खोज की थी कि आज तक इतना विकसित होने पर भी मेडिकल साइन्स वह खोज नहीं कर पाया है। हमारे नाड़ी-संस्थान में दो प्रकार के सिस्टम हैं। एक है वोलेन्टरी और दूसरा है ऑटोनर्वस-स्वत:चालित और इच्छाचालित। इच्छाचालित नाड़ी-संस्थान के द्वारा भी बहुत शक्ति का व्यय होता है। यहां खोज यह हुई थी कि हम स्वत:चालित नाड़ी-संस्थान पर भी नियन्त्रण कर सकते हैं। श्वास को रोक सकते हैं, शरीर के तापमान को कम कर सकते हैं, जो चयापचय की क्रिया है उसको भी हम धीमी कर सकते हैं। हृदय की घड़कन को रोक सकते हैं और कम कर सकते हैं। जितने स्वत:चालित हमारे कार्य हैं, उन पर भी नियन्त्रण स्थापित कर सकते हैं। उन पर नियन्त्रण करने का अर्थ होता है शक्ति के व्यय को रोक देना।
आज एक ऐसी खोज हो रही है और निकट भविष्य में विकास में आने वाली बात है कि आदमी को शीतीकरण की प्रक्रिया से जमा दिया जाएगा। जीते आदमी को शीतीकरण की प्रक्रिया से बर्फ के जैसे जमा दिया जाएगा। पांच वर्ष, दस वर्ष, पचास वर्ष जितना चाहें, कोल्डस्टोरेज में जैसे फल पड़े रहते हैं, वैसे पड़ा रहेगा। और जब चाहें कि पुनर्जीवित करना है, उसको गर्म किया, फिर वह सक्रिय हो उठेगा। उसकी आयु ५० वर्ष की और बढ़ गई। यानी उसकी जीवनशक्ति को पचास वर्ष जीवित रख दिया। शक्ति-व्यय को बचा लिया, रोक दिया। यही तो प्रक्रिया थी। स्वत:चालित नाड़ी-संस्थान को बन्द कर दिया और जीवनी शक्ति का उतना काल हमने बढ़ा लिया। बहुत महत्त्वपूर्ण खोज थी, हमने भुला दिया। बिलकुल ही भूल गए। हम आज न श्वास-संयम जानते हैं, न नाड़ी पर नियंत्रण जानते हैं, न तापमान को घटाना जानते हैं, न चयापचय की क्रिया को कम करना जानते हैं। इन सारी क्रियाओं को निरर्थक समझ कर हमने भुला दिया है।
___ हम कुछ अतीत में लौटें । वर्तमान में जीना बहुत अच्छा है। वर्तमान का बोध बहुत आवश्यक है, किन्तु केवल वर्तमान से ही काम नहीं चलता। ध्यान की प्रक्रिया वर्तमान में जीने की प्रक्रिया है। यह ठीक है कि आदमी जितना वर्तमान में जीएगा, उसकी शक्ति उतनी ही बढ़ेगी। किन्तु केवल वर्तमान से ही तो हमारा काम नहीं चल सकता। अतीत में भी कभी लौटना होता है, भविष्य में भी जाना होता है। हमारा जीवन, स्मृति, चिन्तन और कल्पना-इन तीनों के आधार पर चलता है। कोरी स्मृति, कोरा चिन्तन और कोरी कल्पना काम नहीं देती। स्मृति अतीत में
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org