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मैं कुछ होना चाहता हूं
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प्रत्याख्यान करने वाली परिज्ञा, छोड़ने वाली परिज्ञा । जानना ठीक है, किन्तु छोड़ना, त्याग करना, प्रत्याख्यान करना - यह चेतना का बहुत बड़ा विकास है जिसमें ज्ञान की क्षमता है, वह घटना को जान लेता है । घटना को जान लेना एक बात है, किन्तु जानने के साथ-साथ घटना में बहना, उसे न भोगना, यह दूसरी बात है । यह चेतना का नया आयाम है, चेतना का बड़ा विकास है
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मनुष्य दो प्रकार के होते हैं - ज्ञाता और भोक्ता । कुछ मनुष्य ज्ञाता भी होते हैं और भोक्ता भी होते हैं। कुछ मनुष्य ज्ञाता हैं पर भोक्ता नहीं होते हैं 1 जानना और भोगना- - यह प्राणी का सामान्य लक्षण है 1
पशु पर किसी ने आक्रमण किया, प्रहार किया । उसे पीटा। पशु भी आक्रोश में आ जाएगा, क्योंकि उसने घटना को जाना है, भोगा है, इसीलिए उसमें प्रतिक्रिया होती है। पशुओं में घोर प्रतिशोध की भावना होती है। ऊंट और भैंस में प्रतिशोध की तीव्र भावना होती है। वर्षों बाद भी दे प्रतिशोध लेते हैं। यह भावना इसीलिए पैदा होती है कि वे घटना को जानते हैं, भोगते हैं ।
प्राणी की सामान्य प्रकृति है - घटना को जानना और भोगना । किन्तु जिनप्राणियों में चेतना का विकास हुआ, उन्होंने इस दिशा में और अधिक विकास किया कि घटना को जान लेना किन्तु उसे भोगना नहीं । ज्ञाता मात्र रह जाना, भोक्ता नहीं बनना । यह बड़ा विकास है । साधना के द्वारा चेतना को नया आयाम दिया गया - घटना के साथ-साथ बहना नहीं घटना को भोगना नहीं, घटना को मात्र जान लेना ।
ध्यान का, दर्शन या प्रेक्षा का तात्पर्य है घटना को जान लेना, अनुभव कर लेना ।
प्रेक्षा- ध्यान के अन्तर्गत हम शरीर- प्रेक्षा का अभ्यास करते हैं । प्रश्न होता है शरीर को क्या देखना ? हमें शरीर को नहीं देखना है । शरीर के रंग-रूप को नहीं देखना है, आकार-प्रकार को नहीं देखना है। शरीर में होने वाली घटनाओं को देखना है । हमारा शरीर एक पदार्थ है, वस्तु है । जो वस्तु है उसमें विविध प्रकार की घटनाएं घटित होती रहती हैं । हमारे शरीर में रासायनिक परिवर्तन होते हैं । शरीर में ऊर्जा के द्वारा नाना प्रकार के परिवर्तन होते रहते हैं । विविध पर्याय उदित होते हैं। तापमान घटता-बढ़ता है । इस प्रकार के और भी अनेक परिवर्तन होते हैं । इन सब परिवर्तनों को जानना, उनके प्रति जागरूक होना, यह चेतना का बड़ा विकास है
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हमारे ध्येय दो होते हैं-बाह्य जगत् यानी वस्तु जगत् और अन्तर्जगत् यानी चेतना जगत् । हम बाहरी जगत् को भी जानते हैं, उसमें होने वाले परिवर्तनों को
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