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मैं मनुष्य हूं (१) लौटने की प्रक्रिया है। कल्पना भविष्य में जीने की प्रक्रिया है और चिन्तन वर्तमान में जीने की प्रक्रिया है। इन तीनों का समन्वय चाहिए। अतीत में लौटने की बात भी सर्वथा व्यर्थ नहीं है। हम अतीत में भी लौटें और ध्यान दें कि किन उपायों के द्वारा हमने शक्ति का विकास किया था।
... मैं प्राणशक्ति के विकास की चर्चा कर रहा हूं। प्राणशक्ति का विकास तीन धाराओं में चले-शरीर की शक्ति, वाणी की शक्ति और मन की शक्ति। उन तीनों धाराओं को विकसित करने के लिए श्वास का बल बढ़े और श्वास-बल को बढ़ाने का एक उपाय हो सकता है-दीर्घश्वास का प्रयोग। जैसे-जैसे दीर्घश्वास का अभ्यास बढ़ेगा तो शिक्षा का एक नया आयाम खुलेगा। विद्यार्थी के जीवन में एक नई दिशा उद्घाटित होगी कि वह विद्यार्थी केवल बौद्धिक विकास वाला विद्यार्थी नहीं होगा। बौद्धिक विकास बहुत जरूरी है पर कोरा बौद्धिक विकास पर्याप्त नहीं है। उसके साथ और भी विकास चाहिए। बुद्धि का विकास तो बहुत है, शरीर साथ नहीं देता। क्या होगा? आज ही हमने एक व्यक्ति को देखा जिसके पास धनबल बहुत है। करोड़ों की सम्पत्ति है पर शरीर बिलकुल बेकार हो रहा है। कितना रुग्ण हो रहा है? मैंने अपने सहवर्ती मुनि से कहा कि इतना धन है, पर यह तो निरन्तर दु:ख अनुभव कर रहा है, किस काम की होगी यह सम्पत्ति? एक बात से हमारा जीवन कभी परिपूर्ण नहीं होता, समग्रता चाहिए। बौद्धिक विकास की बात बहुत अच्छी है किन्तु उसके साथ-साथ शरीरबल, मनोबल और वचनबल का भी विकास होना चाहिए। उनके विकास का पहला सूत्र है-श्वासबल का विकास और श्वास-बल के विकास का पहला सूत्र है-दीर्घश्वास का प्रयोग।
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