________________
मैं मनुष्यं हूं (१) समस्या न आये तब तक तो सब ठीक है, समस्या आई और घुटने टिकने में देर नहीं लगती। इसका कारण है कि मनोबल नहीं है। इतना क्षीण है मनोबल कि सहिष्णुता का विकास नहीं है। किसी भी स्थिति में रहने की क्षमता नहीं है। हम जिस दुनिया में जीते हैं, वहां अनुकूलता भी है, प्रतिकूलता भी है। वह गर्मी है प्रतिकूलता, वह सर्दी है अनुकूलता। दोनों हैं। एक स्थिति कभी नहीं हो सकती। न कभी सर्दी का एकाधिकार हमारे यहां है और न ही गर्मी का एकाधिकार । दोनों बराबर चलते हैं। हम अपनी शक्ति का ऐसा विकास करें कि सर्दी को सह सकें, गर्मी को भी सह सकें। सर्दी को सहना भी बड़ा कठिन होता है, गर्मी को सहना भी बड़ा कठिन होता है। अनुकूलता को सहना भी बड़ा कठिन काम है
और प्रतिकूलता को सहना भी कठिन काम है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है प्रतिकूल परिस्थिति की अपेक्षा अनुकूल परिस्थिति को सहना और ज्यादा कठिन काम है। जब मनुष्य के सामने अनुकूलता आती है तब आवेग बढ़ जाता है, अहंकार बढ़ जाता है। आदमी उसे सहन नहीं कर पाता। बहुत बार ऐसा भी होता है कि एक साथ अधिक अनुकूलता आने पर आदमी अपने आपको भूल जाता है। कभी-कभी प्राण वियोग भी कर लेता है।
__ अनुकूलता को सहना भी बड़ा कठिन होता है। हम लोग द्वेष को तो फिर सह लेते हैं पर राग को नहीं सह पाते। अप्रिय संवेदनों को झेल लेते हैं पर प्रिय संवेदन को झेलना बहुत कठिन होता है। हमारी शक्ति का ऐसा विकास हो, जिसमें हम अनुकूलता और प्रतिकूलता दोनों को झेल सकें । मनोबल का इतना विकास हो जाए कि अनुकूलता के सामने घुटने न टिके और प्रतिकूलता के सामने भी घुटने न टिके। ऐसे मनोबल का विकास हो सकता है। भारतीय चेतना में शरीर-बल और मनोबल के विकास की बहुत घटनाएं घटित हुई हैं और ऐसा अद्भुत मनोबल कि जिसकी सामान्य आदमी कल्पना भी नहीं कर सकता। यदि हिन्दुस्तान के पास मनोबल नहीं होता तो इतने बड़े साम्राज्य से अशस्त्र होकर लड़ना और अपनी शताब्दियों से खोये हुए वैभव को, स्वतन्त्रता को पुन: प्राप्त कर लेना कोई सामान्य घटना नहीं है, विशिष्ट घटना है और केवल मनोबल के आधार पर ही इसमें बहुत बड़ा काम हुआ है। और भी कुछ परिस्थितियां हो सकती हैं पर उन सारी परिस्थितियों में मनोबल का बहुत बड़ा योग है। हम मनोबल का भी ठीक मूल्यांकन नहीं कर रहे हैं।
वाणी का बल बड़ा ही अद्भुत होता है। हमारी प्राणधारा यदि वाणी के साथ जुड़ जाये और वाणी का बल बढ़े तो एक व्यक्ति के मुंह से निकलने वाली बात विफल नहीं हो सकती। हमारे यहां वचनसिद्धि मानी गई है। वचन की सिद्धि जिस
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org