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__मैं कुछ होना चाहता हूं
सही अवश्य थे, पर इनसे पूरा समाधान नहीं मिला। वैज्ञानिकों का चिन्तन आगे बढ़ा। आज वे मानते हैं कि वे सारी शाखाएं इन्टर्कनेक्टेड हैं, परस्पर जुड़ी हुई हैं। जब तक इनका विरोध समवेत अध्ययन नहीं होगा, सारी शाखाओं को जोड़कर नहीं देखा जाएगा, तब तक वास्तविकता हाथ नहीं लगेगी। एकांगी दृष्टि के द्वारा लिए गए सारे निर्णय अपने आप गलत होते चले जा रहे हैं। आज सारी शाखाओं का एक साथ अध्ययन करने का प्रयत्न चल रहा है। स्याद्वाद का दृष्टिकोण विज्ञान के क्षेत्र में प्रवेश पा रहा है। वह कहता है, तोड़कर मत देखो। एक वस्तु के अनन्त पहलू हैं। तुम जितना देख सको, सापेक्ष देखो। एक-एक पहलू को देखने से निर्णय तक तो पहुंचा जा सकता है, परन्तु वह सही निर्णय नहीं होगा, पूरा निर्णय नहीं होगा। वह निर्णय नैर्यात्रक नहीं होगा, ठेठ तक पहुंचने वाला नहीं होगा। वह समस्या के पार पहुंचने वाला नहीं होगा। समस्या के पार तक तभी पहुंचा जा सकता है जब हमारा अध्ययन सभी पहलुओं से जुड़ा हुआ हो और उसी के आधार पर कोई निर्णय निकले।
समाजशास्त्री का एक निर्णय होता है, अर्थशास्त्री का एक निर्णय होता है। अध्यात्मशास्त्री और मानसशास्त्री का भिन्न निर्णय होता है। ये सारे निष्कर्ष यदि बंटे हुए हों, उनके बीच कोई अभेद्य दीवार हो तो वे सब गलत होंगे। कोई भी निर्णय संपूर्ण दृष्टि से सही नहीं होगा। वे सब एकांगी होंगे। वे सब सही तभी होंगे जब बीच की दीवार तोड़ दी जाए और सबको सापेक्षता के सूत्र से जोड़ दिया जाए। माला तभी बन सकती है जब प्रत्येक मनके में एक धागा पिरोया हुआ हो। मनके अलग-अलग हैं, पर धागा एक हो तो माला बन जाती है। यदि धागा न हो तो मनका, मनका ही रहेगा, माला नहीं बनेगी। माला के लिए एक सूत्र का होना जरूरी है। सचाई को पाने के लिए एकसूत्रता को पाना बहुत जरूरी है।
एकांगिता के कारण ध्यान के प्रति यह धारणा बन सकती है कि ध्यान करने का अर्थ है-निकम्मा रहना, समय का अपव्यय करना। जिसने केवल समाज शास्त्र या अर्थशास्त्र को पढ़ा है, उसके मन में यह विकल्प उठ सकता है। ऐसा विकल्प उठना अस्वाभाविक नहीं है, स्वाभाविक और यथार्थ है। क्योंकि वह केवल समाजशास्त्री है, केवल अर्थशास्त्री है। वह अध्यात्म के रहस्य को नहीं जानता। जो समाजशस्त्री है, उसे अध्यात्मशास्त्री या समाजशास्त्री भी होना नितान्त आवश्यक है। यदि वह अर्थशास्त्र को नहीं जानता तो कभी-कभी धर्म के विषय में ऐसी बेबुनियादी बातें भी कह डालता है, जिनका समाज के साथ कोई मेल नहीं बैठता, कोई संगति नहीं होती। उसका उपदेश केवल आकाशी उड़ान रह जाता है। व्यवहार के धरातल पर वह कभी जीवित नहीं रह पाता । वस्तु के अनेक पहलू होते
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