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सुधरे व्यक्ति समाज व्यक्ति से
एक विद्यार्थी ने कहा-मैं स्मृति का विकास करना चाहता हूं, एकाग्रता का विकास करना चाहता हूं और अपनी कुछेक आदतों को बदलना चाहता हूं। क्या यह संभव है?
मैंने कहा-इस दुनिया में असंभव भी कुछ नहीं है और संभव भी कुछ नहीं है। दोनों सापेक्ष कथन हैं। हर बात संभव बन सकती है और हर बात असंभव बन सकती है।
उसने कहा-मुझे बताएं कि क्या मेरे लिये ये सब संभव है? मैंने पूछा-तुम यहां कितने दिन रहना चाहते हो? उसने कहा-आधे घण्टा का समय है। इससे अधिक समय नहीं है।
मैंने कहा-तब सब असंभव है। यह बुद्धि का लेखा-जोखा नहीं है कि एक प्रश्न पूछा, उत्तर दिया, समाधान मिला या न मिलने पर तर्क आगे बढ़ा और वह बढ़ता ही चला गया । यदि बुद्धि के स्तर पर इन प्रश्नों का तुम समाधान चाहते हो तो मैं कहूंगा कि सब असंभव है। यदि तुम प्रयोग के आधार पर कुछ करना चाहते हो, समय लगाना चाहते हो तो तीनों बातें संभव हैं।
हमारे समाने सबसे बड़ा आयाम है-बुद्धि का। हमने बुद्धि को इतना अतिरिक्त मूल्य दे दिया है कि हम मानने लग गए-इस संसार में बुद्धि से बढ़कर और कुछ भी नहीं है। वास्तव में बुद्धि का इतना महत्त्व नहीं है, इतना बड़ा स्थान नहीं है। किन्तु जब छोटे को बड़ा स्थान दे दिया जाता है और बड़े को छोटा स्थान दे दिया जाता है तो वहां नाना प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। यदि हम आज की समस्याओं का विश्लेषण करें तो हमें ज्ञात होगा कि अनेक समस्याओं का जन्म इसलिए हुआ है कि हमने बुद्धि को अतिरिक्त मूल्य दिया है।
____ आज का आदमी बदलना भी बुद्धि के स्तर पर चाहता है। वह स्मृति का विकास भी बुद्धि के स्तर पर चाहता है और एकाग्रता का विकास भी बुद्धि के स्तर पर चाहता है। प्रयोग के स्तर पर जो घटित हो सकता है, उसे बुद्धि के स्तर पर कैसे घटित किया जा सकता है? यह बिलकुल असंभव बात है। बुद्धि का काम है विश्लेषण करना, निर्णय करना, तर्क करना और संदेह करना। जहां कहीं बुद्धि का व्यायाम होगा, वहां सबसे पहले संदेह होगा-यह क्यों हो रहा है? ऐसा क्यों कहा जा रहा है? क्या रहस्य है? बुद्धि हो और संदेह न हो, यह असंभव है। बुद्धि को संदेह करना ही होता है। कोई भी राजनीतिज्ञ व्यक्ति सामने वाले व्यक्ति की बात पर
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