Book Title: Main Kuch Hona Chahta Hu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 85
________________ ७८ मैं कुछ होना चाहता हूं सुधरता है, आदतें बदलती हैं। आदतों के रूपान्तरण में इन ग्रन्थियों के स्रावों का बड़ा योग होता है। ग्रंथियों का स्राव सन्तुलित होता है तो आदतें अपने आप सुधरने लग जाती हैं। ध्यान एक प्रयोगशाला है व्यक्तित्व को सुधारने की। आचार्य श्री ने एक स्वर दिया-व्यक्ति सुधरे। आज का स्वर दूसरा है-समाज सुधरे। इस स्वर में व्यक्ति की बात को भुला दिया गया। किंतु अध्यात्म का यह स्वर नहीं हो सकता। समाज को सुधारा जा सकता है नियन्त्रण के द्वारा, कठोर अनुशासन के द्वारा। सुधारा जा सकता है-यह प्रयोग नहीं करना चाहिए किंतु कहना चाहिए उसे नियंत्रित किया जा सकता है।' यह सचाई है कि कठोर नियंत्रण के बावजूद भी व्यक्ति आज वहां का वहां है। बीसों, तीसों, पचासों वर्षों के नियंत्रण के बाद भी एक इन्च भी नहीं सरक पाया है। आज भी उसमें लालची मनोवृत्ति है। अधिनायकवाद या कठोर कानून होने पर भी वह भ्रष्टाचार करता है, स्मगलिंग करता है तथा और भी अनेक बुराइयां करता है। साम्यवादी देश के लोगों में आज फिर एक प्रश्न उभरा है कि इतना कठोर नियन्त्रण होने के बाद भी व्यक्ति बदला नहीं है। सामान्य स्तर पर ही नहीं. सरकारी स्तर पर भी इस बात को स्वीकार किया गया है कि व्यक्ति बदला नहीं है। यह बड़े आश्चर्य की बात है। अध्यात्म का स्वर बहुत महत्त्वपूर्ण स्वर है। इसी स्वर में यह गाया गया-'सुधरे व्यक्ति समाज व्यक्ति से' । व्यक्ति सुधर सकता है। उसका हृदय बदल सकता है। सुधारने का एकमात्र उपाय है-अध्यात्म । इसके अतिरिक्त ह्रदय-परिवर्तन का कोई सशक्त माध्यम नहीं है। एक भाई ने कहा-मैं शिविर में आया, साधना की। अब मैं ऐसा अनुभव करता हूं कि मैं अपने पूरे परिवार को शिविर में भेजं। मैंने पछा-क्यों? उसने कहा-यदि परिवार के सारे सदस्य सुधर जाते हैं तो मेरा जीवन बहुत शांति और आनन्दमय हो जाएगा। यह सचाई है, जब व्यक्ति सुधरता है और उसे यह अनुभव होने लगता है कि मेरी आदतें बदली हैं, मेरे आवेग कम हुए हैं. तब वह चाहेगा कि उसकी पत्नी भी आए, पुत्र भी आए, वे सब सदस्य आएं जो बदलना चाहते हैं। रूपान्तरण की अनुभूति जब व्यक्ति को स्वयं को हो जाती है तब वह पूरे परिवार को बदला हुआ देखना चाहेगा, क्योंकि उस स्थिति में ही शांति बनी रह सकती है. घर की स्थिति ठीक हो सकती है। ___ ध्यान आदतों में परिवर्तन लाने का सशक्त माध्यम है। तुलसी अध्यात्म नीडम्' का यह 'प्रज्ञा-प्रदीप' आदतों को बदलने की प्रयोगशाला बना हुआ है। साधक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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