Book Title: Main Kuch Hona Chahta Hu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 82
________________ मुधरे व्यक्ति समाज व्यक्ति से कुछ समय बीता, हवा तेज चलने लगी। गुरु ने कहा-'अरे' उठकर दरवाजा बन्द कर दो। सर्दी के मारे ठिठुर रहा हूं।' शिष्य ने सोते-सोते ही कहा-गुरुदेव । मैं दरवाजे से बहुत दूर सोया हुआ हूं। आप पास में ही हैं। पैरों से धक्का दें, दरवाजे बन्द हो जाएंगे। गुरु ने वैसा ही किया। पर तेज हवा से फिर दरवाजे खुलने लगे। गुरु ने कहा-शिष्य! अब उठकर दरवाजे के आगल लगा दो। शिष्य तड़ाक से बोला-तीन काम मैंने कर दिए तो एक काम आप ही कर दें। जब तर्क बीच में आता है तब गुरु और शिष्य की बात भी कहीं रह जाती है। सचमुच एक बहुत बड़ा प्रश्न है। हम स्वयं आत्म-विश्लेषण करें कि हमारे जीवन में हर क्षण तर्क आड़े रहता है। जहां तर्क आता है वहां समस्या उलझ जाती है। तर्क के द्वारा सम्भवत: पांच प्रतिशत समस्याएं सुलझ सकती हैं, पर पच्चानवें प्रतिशत समस्याएं और अधिक उलझ जाती हैं। वह गांठ घुलती जाती है। वह रेशम की गांठ बन जाती है, जो खोलने पर भी नहीं खुलती। मैंने उस भाई से कहा-तुम तर्क के आधार पर यदि वह काम करना चाहते हो तो वह असंभव है। प्रयोग के स्तर पर आओ. अनुभव के स्तर पर उतरो, वह बात संभव हो जाएगी। आदमी बदलना चाहता है, सुधरना चाहता है, विकास करना चाहता है, पर यह सब प्रश्योग किए बिना नहीं हो सकता। ध्यान का जीवन प्रयोग का जीवन है। कोई व्यक्ति यदि बुद्धि के स्तर पर उसे समझना चाहे तो वह कभी नहीं समझ सकेगा। आज तक जिस किसी व्यक्ति ने ध्यान को समझा है, उसे प्रयोग के आधार पर ही समझा है, ज्ञान के आधार पर नहीं, विवेचना के आधार पर नहीं। शिविरार्थिनी एक बहिन ने अभी-अभी कहा-मैंने जीवन में यह कल्पना कभी नहीं की थी कि ऐसा आनन्दमय जीवन भी जीया जा सकता है। जीवन का ऐसा आनन्दमय पक्ष भी है। पर मैंने प्रयोग किया और उसका प्रत्यक्षत: अनुभव कर लिया। मैं पूछना चाहता हूं, क्या तर्क के आधार पर यह बात समझी जा सकती है? एक भाई ने कहा-मैंने यह कभी नहीं समझा था कि मेरा इतना चंचल चित्त भी कभी एकाग्र हो सकता है। क्या यह बात तर्क के आधार पर समझी जा सकती है, समझाई जा सकती है! कभी नहीं समझी जा सकती। इसको केवल प्रयोग के स्तर पर या अनुभव के स्तर ही समझा जा सकता है। अपने आपको बदलने का, व्यक्तित्व के रूपान्तरण का और आदतों के परिवर्तन का सबसे बड़ा उपाय है अनुभव के जगत् में प्रवेश पाना। यह अनुभव का जगत् ही ध्यान का जगत् है और यह ध्यान का जगत् ही अनुभव का जगत् है। आदमी क्यों बिगडता है, क्यों सुधरता है-इस पर भी हम विमर्श करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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