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मानसिक अनुशासन के सूत्र के पीछे कितना बड़ा सूक्ष्म जगत् है, इसको समझने का प्रयत्न ही नहीं किया। प्रयत्न करने पर भी समझ नहीं पाए। यदि हम अपने भीतर छिपे हुए विराट, सूक्ष्म जगत् को समझ पाते तो मन से लड़ने की बात आदमी को उपजती ही नहीं। सारा दोष सूक्ष्म जगत् से आ रहा है। सारे दोष भावना से प्रवाहित हो रहे हैं। इस स्थूल शरीर के भीतर बहुत बड़ा सूक्ष्म जगत् है। वहां से आने वाली भावना की धारा मन को काम में लेती है। मन बेचारा है नौकर। जैसा काम सौंपा जाता है, वैसा वह कर देता है। नौकर कितना ही शक्तिशाली हो, मालिक के कहने के अनुसार उसे काम करना ही पड़ता है। कभी-कभी मन को अनचाहा काम भी करना पड़ता है। दोष भावना से आ रहा है। हम वहां पहुंच नहीं पाते या पहुंचना नहीं चाहते और मन से लड़ने की बात सोचते हैं। इसका परिणाम क्या होगा? हजारों-वर्षों से या अनन्त काल से आदमी से लड़ता रहा है, पर वह आज तक उसको पराजित करने में सफल नहीं हुआ। जिन लोगों ने यह जान लिया कि मन के साथ लड़ने का प्रयास व्यर्थ है, वे भावना के स्तर पर, दोषों को सुधारने में सफल हए हैं।
. आदमी की आदत बड़ी विचित्र होती है। पड़ोसी से दुश्मनी होती है। पड़ोसी यदि शक्तिशाली होता है तो वह अपना बदला नहीं ले पाता, किन्तु वह पड़ोसी की गाय-भैंस पर लाठियों का प्रहार कर अपनी दुश्मनी का बदला लेने की कोशिश करता है। पूछने पर कहता है, पड़ोसी नहीं तो उसकी गाय-भैंस ही सही। ये पशु भी तो उसी के हैं।
हम भी वैसा ही कर रहे हैं। भावना तक पहुंच नहीं पाते तो बेचारे मन को ही दण्डित करने लग जाते हैं।
साधना करने वाले व्यक्ति को इस परेशानी से बचना चाहिए। उसे इस सचाई को समझ लेना चाहिए कि मन के साथ लड़ना व्यर्थ है। उसके साथ लड़ने की कोई जरूरत नहीं है। मन जो करे, उसे करने दो। यदि लड़ाई करनी है तो उससे करो जो मन से यह करवा रहा है। उसके साथ लड़ना व्यर्थ नहीं जाएगा। उसके साथ भी लड़ना नहीं होगा, उसका भी प्रतिरोध नहीं करना होगा, पर दूसरी पद्धति से उस पर नियन्त्रण करना होगा।
भावना, संस्कार और वृत्तियां आती हैं और बेचारे मन पर चित्र बनाकर चली जाती हैं। मन कोरा कागज है, और कुछ भी नहीं ।
चित्रकारिता की परीक्षा हो रही थी। दस-दस, बारह-बारह वर्ष के बच्चे परीक्षार्थी थे। उनको तीन चित्र बनाने थे। एक चूहे का, दूसरा बिल्ली का और तीसरा कुत्ते का। विद्यार्थियों ने तन्मयता के साथ चित्र बनाए, उनमें रंग भरे। परीक्षा का समय समाप्त हुआ। चित्रकार अध्यापक एक-एक विद्यार्थी के चित्रों को
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