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मैं कुछ होना चाहता हूं वाला मन कोई दूसरा है। भीतर में ये दो बातें होती हैं । यह सब क्या है? सबसे बड़ी परेशानी यही है कि जो सोचता हूं वह कर नहीं पाता। सब कुछ उलटा होता है। इसी से दिन-रात परेशानी में रहता हूं।
___ मैंने कहा-परेशान मत बनो। यह केवल तुम्हारी ही समस्या नहीं है, पूरी मानव-जाति की समस्या है। प्रत्येक मनुष्य की यह समस्या है। मनुष्य की ही नहीं, जिस किसी प्राणी में मन का विकास है, वह इस समस्या से आक्रान्त है। दुनिया में ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है जो इस द्विरूप मन की समस्या का सामना न कर रहा हो। ऐसा करता है, यह ठीक है। पर प्रश्न होता है, क्या मन भी दो हैं। मन तो एक ही है। यदि मन एक है तो जिस मन से सोचा कि मैं अमुक कार्य नहीं करूंगा तो उस मन को वह काम नहीं करना चाहिए। यदि मन एक होता तो आदमी का सोचना और करना एक होता। किन्तु उसका सोचना और करना दो होते हैं इसलिए यह मानना होगा कि मन दो हैं। अब बताएं। किस मन से लडूं, और किस मन का नियन्त्रण करूं? क्या सोचने वाले मन से लडूं, उस पर नियंत्रण करूं? आदमी लड़ने की बात सोचता है, नियन्त्रण की बात सोचता है, परन्तु बहुत बार ऐसा होता है कि जिस पर नियंत्रण करना चाहता है, वह तो बच निकलता है और जिस पर नियन्त्रण नहीं होना चाहिए वह बेचारां फंस जाता है। अपराधी बच जाता है और निरपराधी पकड़ लिया जाता है।
मैंने कहा-हमारा मन बिलकुल निरपराध है। उसका कोई दोष नहीं होता। वह तो एक शक्ति है। मन एक शक्ति है, वचन एक शक्ति है और शरीर एक शक्ति है। ये तीन शक्तियां हैं, कार्य के साधन हैं। ये इतने सशक्त साधन हैं कि किसी भाग्यशाली को ही मिल पाते हैं। तीनों महाशक्तियां हैं। क्या हम इन महाशक्तियों से लड़ें? क्या इन पर नियन्त्रण करने की बात सोचें? लड़ने और नियन्त्रण करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
___ इतना मायाजाल, इतना रहस्यवाद कि कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या हो रहा है? मूल अपराधी पकड़ में नहीं आ रहा है और जो सामने आ जाता है, उसे ही दंडित किया जा रहा है। कुछ अपराधी का पता ही नहीं चलता। कुछ अपराधी सामने होते हैं, वे ज्ञात हो जाते हैं !
मन कोई दोष नहीं करता। वह पवित्र शक्ति है। वह हमारे तन्त्र का शक्तिशाली अवयव है। हम उसका जैसा चाहें वैसा उपयोग कर सकते हैं। किन्त अज्ञान के कारण हम उस पर नियन्त्रण करने की बात सोचते हैं। निर्दोषी का कैसा नियन्त्रण ? दोष कहीं और है। दोषी कोई और है। हमने केवल स्थूल जगत् को समझा है। स्थूल शरीर, स्थूल वाणी और स्थूल मन को समझा है। किन्तु इस स्थूल
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