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मैं कुछ होना चाहता हूं है-कैसे होगा? हाथ का संयम होगा तो स्पर्शन इंन्द्रिय पर विजय प्राप्त हो जाएगी। ये सब जुड़े जुए हैं। इनके सम्बन्ध का नियम ज्ञात होने पर इनको जीतना सरल हो जाता है। आयुर्वेद के आचार्यों ने लिखा-आंख में पीड़ा हो तो पैर की अंगुलियों पर तेल लगाओ, आंख की पीड़ा शांत हो जाएगी। यह कैसा संबंध? ऊंट और गधे का रिश्ता। कहां आंख और कहां पैर! पर यह एक सचाई है। आंख और पैर-दोनों अग्नितत्त्व से जुड़े हुए हैं। अग्नितत्त्व की ज्ञानेन्द्रिय है चक्षु और कर्मेन्द्रिय है पैर। दोनों का नियम परस्पर जुड़ा हुआ है। यह नियम हो जाने पर उनका संबंध मन में आश्चर्य पैदा नहीं करता। तेज धूप में चलते हैं तब पैर गर्म हो जाते हैं तो साथ-साथ आंखें भी गरमा जाती हैं। आंख बीमार होती है तो पैरों को ठंडे पानी में रखने से उसकी बीमारी शान्त हो जाती है। वायुतत्त्व की ज्ञानेन्द्रिय है स्पर्शन और कर्मेन्द्रिय है हाथ । हाथ का और स्पर्शन इन्द्रिय का संबंध जुड़ा हुआ है। हाथ का संयम होने पर स्पर्शन इन्द्रिय वश में हो जाता है। यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण तथ्य उद्घाटित हुआ है। इन्द्रियों पर विजय पाने के और भी सरल उपाय हैं। आंख को बंद कर दो, दिखाई नहीं देगा। कान में अंगुली डाल दो, सुनाई नहीं देगा। नाक में रूई डाल दो, सुगन्ध या दुर्गन्ध नहीं आएगी। परन्तु स्पर्शन इंद्रिय पर विजय कैसे पाई जाए? कोई उपाय ही नहीं लगता। यह सबसे जटिल प्रश्न था। परन्तु इस श्लोक का प्रथम शब्द 'हत्थसंजए' इस प्रश्न का सचोट समाधान प्रस्तुत करता है। हाथ का संयम करो, स्पर्शन इन्द्रिय पर विजय प्राप्त हो जाएगी। वायुतत्त्व का संबंध है स्पर्शन इन्द्रिय से। वायुतत्त्व का संबंध है हमारे हाथों से। ध्यान-काल में जिनकों वायु अधिक सताता है, ज्यादा चंचलता लाने लगता है, तब एक मुद्रा की जाती है-वायु-विजय के लिये। साधक पद्मासन में बैठ कर हाथ के अंगूठों के निचले पौरों पर कनिष्ठा अंगुली को लगा देता है। इस मुद्रा के कुछ ही समय पश्चात् वायु का प्रकोप कम होने लग जाता है।
पैर का संयम करने से आंख का संयम हो जाएगा। वाणी का संयम करने से श्रोत्रेन्द्रिय का संयम हो जाएगा। दोनों आकाश तत्त्व से संबद्ध हैं। आकाश तत्त्व की ज्ञानेन्द्रिय है श्रोत और कर्मेन्द्रिय है वाक् ।
___ जब हम इन सब नियमों को जान लेते हैं। तब यह श्लोक हमें बहुत महत्त्वपूर्ण लगता है। जब तक नियमों को नहीं जानते तब तक श्लोकगत बातें साधारण-सी लगती हैं। हाथ का संयम करो। हाथ का क्या संयम करें? क्या उसको हिलाएं नहीं? किसी को चांटा तो मार ही नहीं रहे हैं। फिर और अधिक क्या संयम करें? पैर का क्या संयम करें? किसी को लात तो मार ही नहीं रहे हैं। फिर कैसा संयम? जब नियम ज्ञात नहीं होता तब अनेक प्रकार के प्रश्न खड़े होते हैं। जब
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