Book Title: Main Kuch Hona Chahta Hu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 63
________________ ५६ मैं कुछ होना चाहता हूं है मन । यह चेतना को भीतर से लाता है। उसके बाद है वाणी और फिर है शरीर। यह है जीवन की सीमा। हमारा सारा आचार और विचार इनकी सीमाओं में निर्धारित होता है। फिर चाहे आचार और विचार अच्छा हो या बुरा। कोई बुरा विचार मन में उभरा और मन तक ही सीमित रहा तो व्यवहार में वह अलाभप्रद नहीं बनता। मन में आया कि उस व्यक्ति को दो-चार लात मारूं, चांटे जमाऊं या उसका गला घोट दूं। यह विचार आया, मन तक रहा तो कोई बात नहीं। आया और चला गया, भीतर प्रवेश नहीं हो सका किन्तु जब वही विचार भाषा में आ जाए तो क्या होता है, सब उसको जानते हैं। आचरण की सीमा आगे बढ़ गई। व्यवहार आगे बढ़ गया। रोष पैदा हो गया, आक्रोश पैदा हो गया और सामने वाले व्यक्ति की भृकुटि तन गई। बात यदि भाषा तक ही सीमित होती है, तो केवल तनाव की स्थिति बनती है। जब वही बात काया में उतर आती है तब स्थिति और गंभीर बन जाती है। हाथ उठ जाता है। चांटे जड़ दिए जाते हैं। लातें मार दी जाती हैं । संघर्ष प्रारम्भ हो जाता है। मन की एक सीमा है। वाणी की एक सीमा है। शरीर की एक सीमा है। हमारे सारे आचरण और व्यवहार-इन सीमाओं में चलते हैं। इसीलिए सबसे पहला स्थान मन को दिया गया। कोई बात मन में आए, संयम करो। उसे मन तक ही सीमित रखो। मन में कोई बुरी बात न आए, अच्छी बात है। पर मन में आ जाए तो उसे मन तक रखो। बाहर मत आने दो। यदि यह सीख लिया जाता है तो बहुत सारी समस्याओं का समाधान हो जाता है। जब आदमी इस सीमा से आगे बढ़ता है तो वह बात उसके वश में नहीं रहती, वह दुनिया की बात हो जाती है। जब तक मन की बात मन में रहती है तब तक वह व्यक्तिगत बात बनी रहती है। पर जब मन की बात भाषा में उतर आती है तब वह सामाजिक बन जाती है, वैयक्तिक नहीं रहती। व्यक्ति और समाज की यही सीमा है। जब आचरण मन की सीमा तक होता है, वह वैयक्तिक होता है। वह व्यक्तिगत सीमा है। मन से बाहर जब आचरण और व्यवहार होता है वहां व्यक्ति की सीमा समाप्त हो जाती है। वही समाज का आदि-बिन्दु बन जाता है। समाज का आरम्भ वचन से होता है। वचन की बात शरीर पर चली जाती है तो इसका और अधिक विस्तार हो जाता है। वाणी एक ऐसी शक्ति है जो एक ओर मन का प्रतिनिधित्व करती है तो दूसरी ओर शरीर को उछालती है। आदमी किसी से लड़ता है तो वाणी के द्वारा लड़ता है। आदमी किसी से प्रेम करता है तो वाणी के द्वारा करता है। आदमी किसी को अपना बनाता है तो वाणी के द्वारा ही बनाता है। आदमी किसी को विरोधी बनाता है तो वाणी के द्वारा ही बनाता है। वाणी की बहुत बड़ी शक्ति है। मुंह से एक बात निकलती है और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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