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वाचिक अनुशासन के सूत्र सामने वाले व्यक्ति को जो चाहे सो बना देती है।
__अंग्रेज पानी में डूब रहा था। एक भारतीय ने देखा। उसके मन में करुणा जागी। वह तैरना जानता था। वह पानी में कूदा और अंग्रेज को बचा लिया। तट पर आकर अंग्रेज ने कृतज्ञता का भाव प्रकट करते हुए कहा-थैक्यू । बचाने वाला अनपढ़ था। वह समझा नहीं। उसने समझा-कह रहा है फेंक दो। उसने अंग्रेज को उठाकर पुन: पानी में फेंक दिया। बोला-मैंने ही निकाला और मुझे ही कह रहा है फेंक दो। यह सारा वाणी का चमत्कार था, शब्द का चमत्कार था और कुछ नहीं। निकालने वाला भी वही था, फेंकने वाला भी वही था। करुणा गायब हो गई उसके मन से। मन में आक्रोश जाग गया। करुणा का स्थान क्रूरता ने ले लिया। अंग्रेज पानी में तड़पता रहा। वह तट पर खड़ा उसे तड़पते देखता रहा। इस दुनिया में वाणी के द्वारा क्या-क्या नहीं होता। सारा इतिहास वाणी पर आधारित है। सारा ज्ञान वाणी में निबद्ध होकर पुस्तकों में प्राप्त है। जो कुछ मिलता है, वह सारा वाणी के द्वारा मिलता है।
वाणी के साथ तीन शक्तियां काम करती हैं: ० एक है वाणी की अपनी शक्ति। 0 एक है भावना की शक्ति। ० एक है वाणी के द्वारा पैदा होने वाली तंरग की शक्ति।
ये तीनों शक्तियां हैं। सबके पृष्ठभूमि में रहती है भावना की शक्ति । वाणी के साथ भावना का बहुत बड़ा संबंध है। जिस भावना से जो वाणी निकलती है वैसा ही कार्य होने लग जाता है और वैसी ही तंरग पैदा होने लग जाती है। भावना के बिना वाणी को समझा ही नहीं जा सकता। आदमी अपनी भावना से भी बात को पकड़ता है और कहने वाले की भावना से भी बात समझ में आ जाती है। भावना है सूक्ष्म वाणी। भावना सबसे अधिक काम करती है। जितने मनोवैज्ञानिक परिवर्तन हैं, सब भावनात्मक वाणी के द्वारा होते हैं। भावना शब्दों के माध्यम से आती है। भावना शब्दातीत नहीं होती। मन में उसका एक आकार बनता है। वह शब्द का ही आकार होता है।
एक बुढ़िया सिर पर गठरी लिए जा रही थी। एक आदमी घोड़े पर चढ़कर जा रहा था। उसने बुढ़िया को देखा। मन में दया जागी। उसने कहा-मां! मैं तुम्हारे गांव ही जा रहा हूं । लाओ, गठरी घोड़े पर रख दो। आगे मैं ठहरूंगा, वहां ले लेना। बुढ़िया ने गठरी दे दी। कुछ दूर जाकर घुड़सवार रुका। बुढ़िया भी पहुंच गई। पानी पीया। बुढ़िया बोली-भाई! अब तुम जाओ, घोड़ा भी थक गया है। गठरी दे दो। बड़ी कृपा की, इतनी दूर गठरी ले आए। घुड़सवार ने गठरी बुढ़िया
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