Book Title: Main Kuch Hona Chahta Hu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 49
________________ ४२ मैं कुछ होना चाहता हूं उसकी सारी संपत्ति मुझे मिल गई। अच्छा इलाज किया आपने कि वह जल्दी चल बसी। अन्यथा उसकी संपत्ति को पाने के लिए मुझे दो-चार वर्ष और रुकना पड़ता। आपने बड़ा उपकार किया। धन्यवाद । जो व्यक्ति जीवन-विज्ञान का पाठ नहीं पढ़ता, वह ऐसा ही करता है। तीसरा साधन है-समताल श्वास । समताल श्वास का अर्थ है-श्वास लेने में जितना समय लगे, छोड़ने में भी उतना ही समय लगना चाहिए, कम या ज्यादा नहीं। इसका अभ्यास भी बहुत अपेक्षित है। चौथा साधन है-कायोत्यर्ग शिथिलीकरण। कायोत्सर्ग के दो अर्थ हैं-काया को शिथिल करना और चेतना के प्रति जागृत रहना। आज का आदमी आवेशों के कारण बहुत तनावग्रस्त है। वह शिथिल होना नहीं जानता, छोड़ना नहीं जानता। वह कसना जानता है, ढीला होना नहीं । यह कसने की सबसे बड़ी समस्या है। एक बात दिमाग में आ गई, फिर वह जीवनभर नहीं निकलती। एक घटना घटित हो गई, वह मन से निकलती नहीं। किसी ने कुछ कह दिया, दिमाग में उसकी गांठ घुल जाती है। दिमाग तनावों से भर जाता है। प्रत्येक क्रिया उसमें तनाव पैदा करती है, प्रत्येक घटना तनाव पैदा करता है। घटना न घटे, यह कभी संभव नहीं। घटना घटती है। पर जो व्यक्ति श्वासशुद्धि की प्रक्रिया को जानता है, वह घटना से बंधता नहीं। घटना घटी, उसे जाना। बात समाप्त । उसका सघन संस्कार नहीं होता। पानी पर खींची हुई लकीर या बालू रेत में खींची हुई लकीर का संस्कार सघन नहीं होता। लकीर खींची और समाप्त । वह अधिक समय तक नहीं टिकती। पानी की लकीर तत्काल मिट जाती है। बालू की लकीर कुछ समय तक टिकती है। हवा चलते ही समाप्त हो जाती है। किन्तु जब वह विचार या घटना पत्थर की लकीर बन जाती है, तब भगवान ही बचाए। आज की प्रत्येक घटना आदमी के दिमाग में पत्थर की लकीर बनती जा रही है। तनाव की समस्या से बचने के लिए कायोत्सर्ग ही एकमात्र उपाय है। इसका मतलब है-शिथिल बनो, ढीले बनो, इतने शिथिल की कहीं भी पत्थर की लकीर बने ही नहीं। पत्थर की लकीर बनने का मौका ही न मिले। कोई लकीर बने तो वह केवल बालू की लकीर या पानी की लकीर बने। लकीर बनी और समाप्त हो गई। बनने और समाप्त होने में समय न लगे। एक साथ हो। कायोत्सर्ग करते समय श्वास अपने आप शुद्ध और मन्द हो जाता है। श्वास को शुद्ध और मन्द करने का चौथा साधन है-कायोत्सर्ग। प्रेक्षा-ध्यान के अभ्यास में इन सभी साधनों का प्रयोग होता है। जैसे-जैसे श्वास की शुद्धि होती है, वह पवित्र और निर्मल होता चला जाता है और हमारा आत्म-दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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