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वाचिक अनुशासन के सूत्र
दर्शन के एक विद्यार्थी ने पूछा-हमारे जगत् में सबसे ज्यादा मूल्यवान क्या है? क्या चेतना का मूल्य सबसे अधिक नहीं है? मैं समझता हूं उसका मूल्य सबसे अधिक है, क्योंकि सारे मूल्य उसी के द्वारा प्रस्थापितं होते हैं। चेतना का जगत् है, इसलिए मूल्य हैं सारे। यदि चेतना न हो तो कोई मूल्य हो नहीं सकता।
___ मैं दो क्षण मौन रहा। उसकी वाक से सहमत होने में भी मुझे कठिनाई का अनुभव हो रहा था और असहमत होने में भी कठिनाई का अनुभव हो रहा था। कभी-कभी ऐसे प्रश्न सामने आते हैं कि उनको स्वीकार करना भी कठिन होता है
और अस्वीकार करना भी कठिन होता है। मैंने कहा-मैं तुम्हारी प्रस्तावना से पूर्णरूपेण सहमत भी नहीं हूं और असहमत भी नहीं हूं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि चेतना बहुत मूल्यवान है। हम सारे मूल्यों की चर्चा चेतना के आधार पर ही करते हैं। जड़ जगत् में मूल्यों की चर्चा कभी नहीं होती। जानते ही नहीं, मूल्यों की क्या चर्चा करेंगे? मूल्यों का ज्ञान ही नहीं है तो उसकी चर्चा कैसे होगी? अवचेतन जगत् में किसी मूल्य की प्रस्थापना नहीं होती, मूल्यों का कोई सिद्धांत नहीं होता, मूल्यों की कोई चर्चा नहीं होती। ये सारे सिद्धांत बनते हैं चेतना के जगत् में। इसलिए चेतना को सर्वोपरि मूल्य दिया जाए, यह तर्क-संगत है। किन्तु सर्वांगीण दृष्टिकोण से देखने पर लगेगा कि यह बात तर्क-संगत होते हुए भी त्रुटिपूर्ण है। चेतना मूक होती है। उसके पास वाणी नहीं होती। चेतना अपने तक सीमित है। उसका विस्तार नहीं होता। चेतना का सारा जगत् छोटा है। उसमें विस्तार नहीं है। दुनिया का सारा विस्तार वाणी के माध्यम से हुआ है। यदि वाणी न हो तो हमारी दुनिया सिमट जाए। यदि भाषा न हो, शब्द न हो तो विस्तार की बात ही नहीं हो सकती। दुनिया सिमट जाती है। फिर कोरा व्यक्ति बचेगा, समाज नहीं बनेगा, संबंध नहीं बनेगा। समाज का विस्तार और संबंधों का विस्तार वाणी के माध्यम से होता है। इसलिए मैं मानता हूं कि हमारी दुनिया में सबसे अधिक मूल्यवान है वाणी। समूची दुनिया वाणी के द्वारा निर्मित है।
कुछेक दार्शनिकों ने यह प्रस्थापना की कि संसार शब्द से उत्पन्न हुआ है। प्रारम्भ में शब्द पैदा हुआ और शब्द से सारी सृष्टि का निर्माण हुआ। मुझे लगता है कि यह कथन वास्तविकता पर आधारित है।
सृष्टि का विस्तार वाक् से होता है, वाणी से होता है। यदि वाणी नहीं होती तो एक आदमी किसी दूसरे आदमी के साथ संबंध स्थापित नहीं कर पाता।
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