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मैं कुछ होना चाहता हूं
लम्बा-चौड़ा करना । प्राण संकुचित रहता है तो श्वास की शुद्धि नहीं होती । श्वास एक बहुत बड़ा तंत्र है। श्वास हमारे व्यक्तित्व के दोनों पहलुओं को बलवान बनाता है, उन्हें संतुलित बनाता है । हमारा एक पहलू है आंतरिक व्यक्तित्व का और दूसरा पहलू हैं बाह्य व्यक्तित्व का । श्वास दोनों पर शासन करता है । वह भीतरी जगत् को भी प्रभावित करता है और बाहरी जगत् को भी प्रभावित करता है। यह एक य -सेतु है। जिसने श्वास का सही मूल्य नहीं समझा वह आगे नहीं बढ़ सकता । जो व्यक्ति मस्तिष्क का संतुलन करना चाहे और श्वास की उपेक्षा करे तो वह कभी सफल नहीं हो सकता। शरीर और मन का संतुलन श्वास के बिना नहीं हो सकता । इसलिए प्राणायाम बहुत जरूरी है
मध्य
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दूसरा है दीर्घश्वास का प्रयोग । दीर्घश्वास वास्तव में सहज श्वास होता है । आदमी श्वास को सही ढंग से लेना नहीं जानता । श्वास तो छोटा होना ही नहीं चाहिये, लंबा होना चाहिए । इसलिए दीर्घश्वास पद का चुनाव किया है। सहज श्वास का मतलब ही है पूरा श्वास, गहरा श्वास । आदमी यह जानता ही नहीं । सुना है मैंने कि पाठ्य पुस्तकों में यह पढ़ाया जाता है कि जिस श्वास से छाती फूले और पेट सिकुड़े, वह सही श्वास होता है । यह कैसे लिखा गया? इसका आधार क्या है ? होना तो यह चाहिए कि श्वास लेते समय पेट फूलना चाहिए, छाती नहीं । जिस श्वास से पेट नहीं फूलता, वह सही श्वास नहीं होता । श्वास के स्पंदन पेट तक पहुंचने चाहिए। यह सही है कि श्वास फेफड़ों से आगे नहीं जाता। फेफड़ों के आगे एक मांसपेशी है - डायाफ्राम । इसे तनुपट कहा जाता है। उसके आगे श्वास जाने का रास्ता नहीं है । पर उसका दबाब आगे तक पहुंचता है, वह नाभि तक पहुंचता है। बच्चे को श्वास लेते देखें। जब वह सोता होता है, तब श्वास के साथ-साथ उसका पेट फूलता है । यही सही श्वास है, पर बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है, भावनाओं और आवेशों से भरता है, वैसे-वैसे श्वास छोटा होता चला जाता है, गलत होता चला जाता है । भावनाओं का, आवेगों का श्वास के साथ गहरा संबंध है। गुस्सा आता है, वह श्वास को छोटा किए बिना नहीं आ सकता । आवेश या आवेग उतरता है, वह श्वास को छोटा किए बिना नहीं उतर सकता। हमारे श्वास की संख्या एक मिनट में सामान्यतया १५-१७ होती है। आवेश काल में वह ३०, ४०, ५०, ६०, तक बढ़ जाती है ।
यह निश्चित नियम है कि आवेश को उतारने के लिए श्वास को छोटा होना ही पड़ता है । अन्यथा उसे उचित पृष्ठभूमि नहीं मिलती। बिना आधार के आवेश कैसे उतर सकता है? दीर्घश्वास की स्थिति में आवेश आ ही नहीं सकता । बचपन में आदमी दीर्घश्वास या सहजश्वास लेने में अभ्यस्त होता है परन्तु ज्यों-ज्यों वह बड़ा होता है, श्वास छोटा करता चला जाता है या श्वास छोटा हो जाता है ।
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